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भामिनी-विलासे भावार्थ-स्वभावसे ही उपवनमें वृक्षारोपणका पुण्य कमाते हुए कुशल मालीसे कहीं कोनेपर रोपा हुआ यही बकुल, अपने पुष्पभारकी अनुपम सुगन्धसे भुवनमण्डलको भर देगा, यह कौन जानता था।
टिप्पणी-कोई कितनी ही उपेक्षा करे यदि अपनेमें गुण है तो स्वयं ही विश्वमें यश फैलेगा। इसी भावको बकुलकी इस अन्योक्ति द्वारा व्यक्त किया है। मालीने तो साधारण पेड़ोंकी भांति बकुलको भी एक कोनेमें रोप दिया था। किन्तु फूलनेपर उसकी सुगन्ध विश्वमें फैल गयी। ऐसी कोई कल्पना भी नहीं करता था कि इस साधारण वृक्षमें इतनी गन्ध हो सकती है। इसी प्रकार विद्वान् का अल्पज्ञजन भले ही आदर न करें और उसे उचित पद भले ही न प्राप्त हो, किन्तु उसकी विद्वत्ता और गुणोंका प्रकाश तो संसारमें फैल ही जायगा। इस पद्यमें बकुलकी गन्धद्वारा विश्वके पूरणरूप पदार्थका असंभावनीयत्वेन वर्णन किया गया है अतः असंभव अलंकार है-"असंभवोऽर्थनिष्पत्तरसंभाव्यत्ववर्णनम् ( चन्द्रा० ) । शिखरिणी छन्द है । ॥५२॥ महान् व्यक्तिका आश्रय भी महान् होता हैयस्मिन् खेलति सर्वतः परिचलकल्लोलकोलाहलै
मन्थाद्रिभ्रमणभ्रमं हृदि हरिदन्तावलाः पेदिरे । सोऽयं तुङ्गतिमिङ्गिलाङ्गकवलीकारक्रियाकोविदः
क्रोडे क्रीडतु कस्य केलिकलहत्यक्तार्णवो राघवः ॥५३॥
अन्वय-यस्मिन् , खेलति, सर्वतः, परिचलकल्लोलकोलाहलैः, हरिहन्तावलाः, हृदि, मन्थाद्रिभ्रमणभ्रमं, पेदिरे, सः, अयं, तुङ्गतिमिङि गलकोविदः, राघवः, केलिकलहत्यक्तार्णवः, कस्य, क्रोडे, क्रीडतु।
शब्दार्थ-यस्मिन् खेलति = जिसके खेलनेपर । सर्वतः = चारों
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