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१३वत उद्देशा
| कायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेलो होय. [प्र०] केटला अधर्मास्तिकायना प्रदेशोबडे स्पर्श करायेलो होय ? [उ०] हे गौतम! जघपाक्याप्रशतिः
8/न्यपदे त्रण अने उत्कृष्टपदे छ प्रदेशोवडे स्पर्श करायेलो होय. बाकी मधुं धर्मास्तिकायना प्रदेशनी पेठे जाणq. ११६॥ एगे भंते ! आगासस्थिकायपएसे केवतिएहिं धम्मस्थिकायपएसेहिं पुढे, गोयमा! सिय पुढे सिय नो पुढे,
जह पुढे जहनपदे एकेण वा दोहिं वा तीहिं वा चउहि वा उक्कोसपए सत्तहि, एवं अहम्मत्थिकायप्पएसेहिवि । केवतिरहिं आगासस्थिकाय? छहिं, केवतिएहिं जीवत्यिकायपएसेहिं पुढे ?, सिय पुढे सिय नो पुढे, जइ पुढे नियमं अणंतेहिं । एवं पोग्गलस्थिकायपएसेहिवि, अद्धासमएहिवि ॥ एगे भंते ! जीवस्थिकायपएसे केवतिरहिं| धम्मस्थि० पुच्छा जहन्नपदे चाहिं उक्कोसपए सत्तहिं एवं अहम्मत्थिकायपएसेहिदि । केवतिएहिं आगासस्थि०?, सत्तहिं । केवतिपहिं जीवधि, सेसं जहा धम्मत्थिकायस्स ॥ पगे भंते ! पोग्गलस्थिकायपएसे केवतिएहिं धम्मस्थिकायपए०१ एवं जहेच जीवत्यिकायस्स ॥ (सूत्र ४८२)॥
[प्र.] हे भगवन् ! आकाशास्तिकायनो एक प्रदेश केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशोबडे स्पर्श करायेलो होय [उ०] हे गौतम ! कदाचित् [लोकने आश्रीयी] स्पर्श करायेलो होय अने कदाचिद [ अलोकने आश्रयी ] स्पर्श करायेलो न होय. जो स्पर्श करायेलो होय तो जघन्यपदे एक, के,त्रण के चार धर्मास्तिकायना प्रदेशवडे स्पर्श करायेलो होय, अने उत्कृष्टपदे सात प्रदेशोबडे स्पर्श कराबेलो होय. ए प्रमाणे अधर्मास्तिकायना प्रदेशोनी साथे पण स्पर्श जाणवो. प्रि०] केटला आकास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय ? [उ.] हे गौतम ! छ प्रदेशोबडे स्पर्श करायेल होय. [.] केटला जीवास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्श करायेल होय [30]
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