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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥११५९॥
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आगासत्थिकापसेहिं पुढे १, गोयमा ! सत्तहिं । केवतिएहिं जीवत्धिकायपएसेहिं पुट्ठे ?, गोयमा ! अणंतेहिं । harएहिं पोग्गलन्थिकाय पएसेहिं पुढे ?, गोयमा ! अणतेहिं । केवतिएहिं अद्धासमएहिं पुट्ठे ?, सिप पुढे सिय नो पुढे, जड़ पुढे नियम अणतेहि ॥ पगे भंते । अहम्मत्थिकाय पए से केवतिएहिं धम्मस्थिकायपएसेहिं पुढे १, गोपमा ! जहन्नपए चउहिं उकोसपए सत्तहिं । केवतिएहिं अहम्मत्थिकाय पएसेहिं पुढे?, जहनपए तिहिं उक्कोस पर छहिं, सेसं जहा वम्मत्थिकायस्स ||
[प्र०] हे भगवन् ! धर्मास्तिकायनो एक प्रदेश केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्शायेलो होय ? [अ०] हे गौतम! जबन्यपदे त्रण प्रदेशोवडे, अने उत्कृष्टपदे छ प्रदेशोवडे स्पर्शायेलो होय. [प्र०] केटला अधर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्शायेलो होय ? [3] हे गौतम! जधन्यपदे चार, अने उत्कृष्ट पदे सात अधर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्शायेलो होय. [प्र० ] केटला आकाशास्ति| कायना प्रदेशोवडे स्पर्शायलो होय ? [उ०] हे गौतम! आकाशास्तिकायना सात प्रदेशोवडे स्पर्शायलो होय. [प्र० ] केटला जीवास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्शायलो होय ? [अ०] हे गौतम! जीवास्तिकायना अनन्त प्रदेशोवडे स्पर्शायलो होय. [प्र०] केटला | पुद्गलास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्शायलो होय ? [३०] हे गौतम! पुद्गलास्तिकायना अनन्तप्रदेशोवडे स्पर्शायलो होय. [प्र० ] केटला अद्धा -काल-ना समयोवडे स्पर्शायलो होय ? [३०] हे गौतम ! कदाचित् कालना समयोवडे स्पर्शायेलो होय अने कदाचित स्पर्शायलो न होय. जो स्पर्श करायलो होय तो अवश्य अनन्तसमयोबडे स्पर्श करायलो होय. [प्र० ] हे भगवन् ! अधर्मास्तिकायनो एक प्रदेश केटला धर्मास्तिकायना प्रदेशोवडे स्पर्शायली होय १ [ उ० ] हे गौतम! जघन्यपदे चार, अने उत्कृष्टपदे सात धर्मास्ति
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१२ शके
उद्देशः ४ ॥११५९ ॥