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अने अलोकने आश्रयी गाडानी ऊधने आकारे कहेली छे. [प्र०] हे भगवन् ! १ आग्रेयी दिशानी आदिमा झुं१२ ते क्याथी व्याख्यामानीकळे छे ? ३ तेनी आदिमां केटला प्रदेशो के ? ४ ते केटला प्रदेशना विस्तारवाळी के ? ५ ते केटला प्रदेशनी के ? ६ तेने अन्ते |
१३वतके प्राप्तिः शुं छे ? ७ अने ते केवा आकारे ? [उ०] हे गौतम! १ आग्नेयी दिशानी आदिमां रुचक , २ ते रुचक थकी नीकळे के, ३
उडशा ॥११५६॥ तेनी आदिमां एक प्रदेश छे, ४ ते एक प्रदेशना विस्तारवाळी छ, ५ ते उत्तरोत्तर वृद्धिरहित छे, अने लोकने आश्रयी असंख्यप्रदे
॥११५॥ शात्मक छे, अलोकने आश्रयी अनन्त प्रदेशात्मक , ६ लोकने आश्रयी आदि अने अन्त सहित , अने अलोकने आश्रयी सादि अने अनन्त जे. अने ७ ते तूटी गएली मोतीनी माळाना आकारे कहेली . याम्या (दक्षिण) दिशा पेन्द्री (पूर्व ) दिशानी पेठे जाणवी नती आग्नेयी दिशानी पेठे जाणवी-इत्यादि जेम ऐन्द्री दिशा कही, तेम चारे दिशाओ अने आनेयी दिशा कही तेम चारे विदिशाओ जाणवी. [प्र०] हे भगवन् ! विमला (ऊर्ध्व) दिशानी आदिमां शुं छे? इत्यादि आयीनी पेठे प्रश्न करवो. [उ.] हे गौतम ! १ विमला दिशानी आदिमां रुचक छ, २ ते रुचक थकी नीक छ, ३ तेनी आदिमा चार प्रदेश छे, ४ ते वे प्रदेशना विस्तारवाळी छे, ५ उत्तरोत्तर वृद्धिरहित ते दिशा लोकने आश्रयी असंख्यातप्रदेशात्मक छे. बाकी अधुं आग्नेयी दिशाने विषे कधु छ तेम जाणवू. परन्तु एटलं विशेष के के ते रुचकने आकारे कहेली छे. ए प्रमाणे तमा (अधो) दिशा पण जाणवी. ॥ ४८०॥
किमिय भंते ! लोपत्ति पवुचह, गोयमा! पंचत्यिकाया, पमणं पवतिए लोएत्ति पवुचइ, तंजहा-धम्मत्थिकाए अहम्मस्थिकाए जाव पोग्गलस्थिकाए | धम्मस्टिकाए णं भंते ! जीवाणं किं पवत्तनि ?, गोयमा ! धम्मत्थिका कारण जीवाणं आगमणगमणभासुम्मेममणजोगा वहजोगा कायजोगा जे यावन्ने तहप्पगारा चला भावा सम्वे 131
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