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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१३॥
१३शतके उद्देशा ॥११३३॥
वण अने उत्कृष्टथी संख्याता होय छ, संख्याता भवसिद्धिक जीवो कहेला छे, ए प्रमाणे यावत संख्याता परिग्रहसंज्ञाना उपयोग | वाळा कहेला है स्त्रीवेदी नथी अने पुरुषवेदी पण नथी, नपुंसकवेदी संख्याता होय छे. ए प्रमाणे क्रोधकषायी पण संख्याता होय होय छे. मानकपायी असंज्ञीनी पेठे (कदाचिद् होय छे अने कदाचिद् होता नथी.) ए प्रमाणे यावत्-(मायाकषायी अने) लोभकपायी जाणवा. संख्याता श्रोत्रेन्द्रियना उपयोगवाळा कह्या छे, ए प्रमाणे यावत्-स्पर्शनेन्द्रियना उपयोगवाळा कह्या छ, नोइंद्रियना
उपयोगवाळा असंज्ञीनी पेठे जाणवा, संख्याता मनोयोगी कहेला छे, अने ए प्रमाणे यावत ( संख्याता) ३९ अनाकारोपयोगी | जाणवा. अनंतरोपपत्र-प्रथम समये उत्पन्न थवावाळा नारको कदाचित् होय छे अने कदाचित् होता नथी. जो होय तो ते असं-15 झीनी पेठे जाणवा. संख्याता परंपरोपपत्र-द्वितीयादि समये उत्पन्न थयेला जाणवा. ए प्रमाणे जेम अनंतरोपपन्न करा तेम अनंतरावगाढ अनंतराहारक, अनन्तरापर्याप्तक अने चरम-जेने बेल्लोज नारक भव बाकी छे ते अथवा नारकभवने छेल्ले समये वर्तताजाणवा. परंपरावगाढ, यावत्-अचरम सुधी जेम परंपरोपपन्न करा तेम कहेना. (ए प्रमाणे संख्याता योजन विस्तारवाळा नरकाबासनी वक्तव्यता कही.)
इमीसे ण भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावासमयसहस्सेसु असंखेजवित्थडेसु एगसमएण केव. | तिया नेरड्या उववज्जति जाव केवतिया अणागारोवउत्ता उववजंति ?, गोयमा ! हमीसे रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु असंखेजवित्थडेसु नरएम एगसमएणं जह. एको वा दो वा निग्नि वा उक्को. असंखेजा नेरड्या उवव०, एवं जहेव संखेजवित्थडेसुतिन्नि गमगा तहा असंखेजवित्थडेवि तिनि गमगा, नवरं
KUMAR
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