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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१४८
| मसए सविमाणवत्तव्यथा सा इहवि ईसाणस्स निरक्सेसा भाणियब्बा जाव आयरक्खा, ठिती सातिरेगाई दो सागरोवमाई, सेसचेच जाय ईसाणे देविंदे देवराया ई०२, सेवं भंते ! सेवं भंते! त्ति (सूत्र ६०४)॥१७-५॥ १७ शतके [प्र.] हे भमवर 1 देवेंद्र देवराज ईशाननी सुधर्मा सभा क्यों कही छे! [उ०] हे गौतम! जंबूद्वीप नामे द्वीपमा मंदरपर्वतनी
उदेश:५
G॥१५३८ उत्तरे आ रत्नप्रभा पृथिवीना अत्यन्त सम अने रमणीय भूमिमामयी उपर चंद्र अने सूर्यने मूकीने आगळ गया पछी-पावत्-(प्रज्ञा पनासत्रना बीजा) स्थान पदमा कह्या प्रमाणे मध्यभागमा ईशानावतंसक विमान आवे छे. ते ईशानावतंसक नामे महाविमान साडा बार काख योजन लांबु अने पहोळ छ-इत्यादि यावत्-दशम शतकमां शक्रविमाननी वक्तव्यता कही छे ते बधी अहीं ईशान संबंधे | यावत्-आत्मरक्षकनी वक्तव्यता सुधी कहेवी. ते ईशानेन्द्रनुं आयुष किंचित् अधिक बे सागरोपमर्नु छ, बाकी बधुं तेज प्रमाणे जाणवू. मायावत-देवेंद्र देवराज ईशान छ २. 'हे भगवन् ! ते एमज डे, हे भगवन् ! ते एमज छे'.॥ ६०४॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीम्बना १७ मा शतकमा पांचमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
शतक १७. (उद्देशक ६.) पुद विकाइए भंते ! इमीसे रय० पुढ० समोहए २ जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढ विक्काइयत्ताए उववज्जित्तए से भंते । किं पुनि उववलित्ता पच्छा संपाउणेजा पुचि वा संपाउणित्ता पच्छा उवव.१, गोयमा! पुचि वा उववजित्ता पच्छा संपाउणेजा पुचि वा संपाउणित्ता पच्छा उववजेजा, से केगटेणं जाव पच्छा उवचनेजा,81
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