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अधिकरण पण छे. [प०] हे भगवन् ! र प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के 'जीव अधिकरणी पण छे अने अधिकरण पण छे' [उ.] व्याख्या- 8| हे गौतम! अचिरतिने आश्रयी, अर्थाद अविरतिरूप हेतुथी जीच अधिकरणी पण छ अने अधिकरण पण के. [प्र०] हे भगवन् ! दा१६ करके प्रज्ञासिल नरयिक अधिकरणी के के अधिकरण [30] हे गौतम! नैरयिक अधिकरणी पण छे अने अधिकरण पण छे, जेम जीव संबंधे
IPउदेश ॥१३६६॥
कह्यु नेम नैरयिक संबंधे पण जाणवू, अने ए प्रमाणे यावर निरंतर वैमानिक सुधीना जीव संबन्वे पण जाणवं, [प्र.] हे भगवन् ! 51 झुंजीव साधिकरणी छे के निरधिकरणी छे। [उ०] हे गौतम! जीव साधिकरणी छे, पण निरधिकरणी नथी. [प्र०] हे भगवन् ।
ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के 'जीव साधिकरणी छे अने निरविकरणी नथी'१ [उ०] हे गौतम! अविरतिने आश्रयी, अर्थात् अवरतिरूप हेतुथी जीवो साधिकरणी छे, पण निरधिकरणी नथी. ए प्रमाणे यावत् वैमानिको सुधी जाणवं. [प०] हे भगवन् ! | जीव आत्माधिकरणी छे, पराधिकरणी छे के तदुभयाधिकरणी छे ? [उ.] हे गौतम! जीव आत्माधिकरणी छे, पराधिकरणी छ अने तदुभयाधिकरणी के. [प्र.] हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के 'जीव आत्माधिकरणी, पराधिकरणी अने तदुभयाधिकरणी पण छ ? [3] हे गौतम ! अविरतिने आश्रयी, अर्थात् अविरतिरूप हेतुथी जीव यावत्-निाधिकरणी नथी. ए प्रमाणे यावत् वैमानिको सुधी जाणवू. [५०] हे भगवन् ! झुं जीवोनुं अधिकरण आत्मप्रयोगयी थाप थे, परप्रयोगथी थाय के के भय प्रयोगथी थाय ने १ [उ.] हे गौतम ! जीवोनुं अधिकरण आत्मप्रयोगधी, परप्रयोगयी अने तदुभयप्रयोगथी पण धाय छे. [म.]
हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के जीवोनुं अधिकरण आत्मप्रयोगथी, परप्रयोगथी अने तदुभयप्रयोगपी थाय. सके ? [३०] हे गौतम ! अविरतिने आश्रयी, अर्थात जीवोनुं अधिकरण अविरतिरूप हेसुथी यावद नदुमयप्रयोगथी थाय हे. ए |
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