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| मसए सविमाणवत्तब्यथा सा इहवि ईसाणस्स निरक्सेसा भाणियन्वा जाव आयरक्खा, ठिती सातिरेगाई दो व्याख्या- सागरोवमाई, सेस तं चेव जाब ईसाणे देविदे देवराया ई०२, सेवं भंते ! सेवं भंते! त्ति (सूत्र ६०४)॥१७-५॥ १७ शतके प्रज्ञप्तिः [प्र.] हे भमवरी देवेंद्र देवराज ईशाननी सुधर्मा सभा क्या कही छे! [उ०] हे गौतम! जंबूद्वीप नामे द्वीपमा मंदरपर्वतनी
उदेश:५ ॥१४॥८॥
G॥१५३८ उत्तरे आ रत्नप्रभा पृथिवीना अत्यन्त सम अने रमणीय भूमिमामयी उपर चंद्र अने सूर्यने मूकीने आगळ गया पछी-यावत्-(प्रज्ञा पनास्त्रना बीजा) स्थानपदमां कह्या प्रमाणे मध्यभागमा ईशानावतंसक विमान आवे छे. ते ईशानावतंसक नामे महाविमान साडा बार काख योजन लांबु अने पहोळ छ-इत्यादि यावत्-दशम शतकमां शक्रविमाननी वक्तव्यता कही छे ते बधी अहीं ईशान संबंधे | यावद-आत्मरक्षकनी वक्तव्पता सुधी कहेवी. ते ईशानेन्द्रनुं आयुष किंचित् अधिक वे सागरोपमर्नु छ, बाकी बधुं तेज प्रमाणे जाणवू. मायावत-देवेंद्र देवराज ईशान छे २. 'हे भगवन् ! ते एमज डे, हे भगवन् । ते एमज छे'.॥ ६०४॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीम्बना १७ मा शतकमा पांचमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
शतक १७. (उद्देशक ६.) पुदविकाइए भंते ! इमीसे रय० पुढ० समोहए २ जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढ विकाइयत्ताए उववजित्तए से भंते । किं पुचि उववजित्ता पच्छा संपाउणेजा पुचि वा संपाणित्ता पच्छा उवव.१, गोयमा! पुचि वा उववजित्ता पच्छा संपाउणेजा पुचि वा संपाउणित्ता पच्छा उववजेजा, से केगटेणं जाव पच्छा उवत्र जेज्जा!,181
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