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व्याख्या-
प्राप्तिः
॥१४०५॥
RAICROCRACHOD
दसमसए अग्गेधीदिसा तहेव नवरं देसेसु अणिदियाणं आइल्लविरहिओ। जे अरूपी अजीवा ते छब्धिहा, अ
५१६ शतके |द्धासमयो नत्थि, सेसं सं चेव सव्वं निरवसेसं। लोगस्स णं भंते ! दाहिणिल्ले परिमंते किं जीवा० ?, एवं चेव, 17
उद्देश: एवं पञ्चच्छिमिल्लेवि, उत्तरिल्लेवि, लोगस्सणं भंते ! उवरिल्ले चरिमंते किं जीवा? पुच्छा, गोपमा! मो जीवा
॥१४०५॥ जीवदेसावि जाव अजीवपएसावि । जे जीवदेसा ते नियम एगिदियदेमा य अणिदियदेसा प अहवा एगिदियदेसा य अणिदिय० दियस्स य देसे, अहवा एगिदियदेमा य अणिदियदेमा य बेंदियाण य देसा, एवं मनिझ. ल्लविरहिओ जाव पंचिंदि०, जे जीवप्पएसा ते नियम एगिदियप्पएसा य अणिदियप्पएसा य अहवा एगिदियप्पएसा य अजिंदियप्पएमा प दियस्सप्पदेसा य अहवा एगिदियपएसा य अणिदिनप्पएसा य बेइंदियाण य पएसा, एवं आदिल्लविरहिओ जाच पंचिंदियाणं, अजीवा जहा दसमसए तमाए तहेव निरवसेसं ॥
[प्र०] हे भगवन् ! लोक केटलो मोटो को छे ? [उ.] हे गौतम! लोक अत्यन्त मोटो कह्यो छे. जेम बारमा शतकमां कह्यु छ तेम अहीं पण लोक संबंधी बधी हकीकत कहेवी, यावत्-ते लोकनो परीक्षेप-परिधि असंख्येय कोटाकोटी योजन . [प्र०] हे भगवन् ! लोकना पूर्व चरमांतमा ( पूर्व बाजुना छेडाना अंते ) १ जीवो छ, २ जीवदेशो छे, ३ जीवप्रदेशो छ, ४ अजीवो छ, ५ | अजीवदेशो छ, ६ के अजीवप्रदेशो के ? [उ०] हे गौतम ! त्यां जीवो नथी, पण जीवदेशो छ, जीवप्रदेशो छ, अजीवो छ, अजी-15 वदेशो छे अने अजीवप्रदेशो पण छे. जे जीवदेशो के ते अवश्य एकेन्द्रिय जीवना देशो छ, अथवा एकेंद्रियना देशो अने अनिन्द्रियनो (एक) देश -इत्यादि वधू दशमा शतकमां कहेल आग्रेयी दिशानी वक्तव्यता प्रमाणे कहे. विशेष ए के, देशोना विष.
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