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व्याक्याप्रज्ञप्तिः ||११३८ ।।
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तथा तुल्य अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध संबन्धे पण जाणवु. माटे हे गौतम! ते कारणथी द्रम्बतुल्य ए 'द्रव्यतुल्य' कद्देवाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! क्षेत्रतुल्य ए 'क्षेत्रतुल्य' शा कारणथी कहेवाय छे ? [उ०] हे गौतम! आकाशना एक प्रदेशावनाढ- एक प्रदेशमा रहेल पुद्गल द्रव्य एक प्रदेशमां रहेल पुद्गलद्रव्यनी साधे क्षेत्रथी तुल्य कद्देवाय छे; पण एक प्रदेशमां रुहेल पुद्गलद्रव्य शिवायना द्रभ्य साथै क्षेत्रथी तुल्य नथी. ए प्रमाणे यावत्-दशप्रदेशावगाढ- दश प्रदेशमां रहेल पुद्गल द्रव्य संबन्धे पण जाणवु तथा तुल्यसंख्या| तप्रदेशावगाढ स्कन्धनी साथे तुल्यसंख्यातप्रदेशावगाढ स्कन्ध तुल्य होय, ए प्रमाणे तुल्य असंख्यात प्रदेशावगाढ स्कन्ध संबन्धे पण जाणवु. माटे हे गौतम! ते हेतुथी क्षेत्रतुल्य ए 'क्षेत्रतुल्य' कहेवाय के.
सेकेणट्टेण भंते! एवं बुचड़ कालतुल्लएर ?, गोधमा । एगसमयठितीए पोग्गले एग० २ कालओ तुल्ले एगसमठितीए पोग्गले एगसमपठितीवइरिसस्स पोग्गलस्स कालओ णो तुल्ले, एवं जाब दससमयद्वितीए, तुल्लसं खेज्जसमपठितीए एवं चेव, एवं तुल्लअसंखेजसमपट्टितीएवि से तेणद्वेणं जाव कालतुल्लए । से केणद्वेणं भंते । एवं बुच्चइ-भवतुल्लए २१, गोयमा ! नेरइए नेरइयस्स भवपाए तुले नेरइयवइरित्तस्स भवट्टयाए नो तुल्ले, तिरिक्खजोजिए एवं चेव, एवं मणुस्से एवं देवेवि, से तेणद्वेणं जाव भवतुल्लए । से केणट्टेणं भंते! एवं वुबइ-भावतुल भा बतुल्लए, गोयमा ! एगगुणकालए पोरगले एगगुणकालगस्स पोग्गलस्स भावओ तुल्ले एगगुणकाल पोग्गले एगगुकालगवइरित्तस्स पोग्गलस्स भावओ णो तुल्ले, एवं जाव दसगुणकालए, एवं तुल्लसंखेज्जगुणकालए पोग्गले, एवं तुल्लअसंखेज्जगुणकालएवि एवं तुलअणंतगुणकालएवि, जहा कालए एवं नीलए लोहियर हालिदे सुकिल्लए, एवं
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१४ सके उद्देशः ७
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