SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir छे, यावत् स्पर्शरहित छे; पण विशेप ए छे के, पुद्गलास्तिकाय पांच वर्णवाळो पांच रसाळो, वे गंधवाळी अने आठ स्पर्शवाळो व्याख्या होय छे. १ ज्ञानावरणीय, यावद्-८ अंतरायकर्म-ए बधां चार स्पर्शवाळां . [प्र.] हे भगवन् ! कृष्णालेश्या केटला वर्णवाली ४।१२शतके प्रज्ञप्तिः छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! द्रव्यलेश्यानी अपेक्षाए पांच वर्णवाळी, यावद्-आठ स्पर्शवाळी कही छे अने भावलेश्यानी | उद्देशः५ ॥१०७९॥ 2॥१०७९॥ अपेक्षाए वर्णादिरहित छे. ए प्रमाणे यावत्-शुक्ललेश्या सुधी जाणवू. १ सम्यग्दृष्टि, २ मिथ्यादृष्टि ३ सम्यग्मिथ्यादृष्टि, ४-७ चक्षुदर्शन वगेरे चार दर्शन. ८-१२ आमिनिबोधिक (मतिज्ञान) वगेरे पांच ज्ञान, यावद्-विभंगज्ञान, आहारसंज्ञा, यावत्-परिग्रहसंज्ञा-ए वां वर्णादिरहित छे. औदारिक शरीर, यावत् तैजस शरीर-ए वां-आठ स्पर्शवाला छे. कार्मणशरीर, मनयोग अने वच नयोग चार स्पर्शवाला छे, काययोग आठ स्पर्शवाळो के. साकारोपयोग अने अनाकारोपयोग-ए बन्ने वर्णादिरहित छे. [प्र.] हे भगवन् ! बधां द्रव्यो केटला वर्णवाला छे ?-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! सर्व द्रव्योमांना केटलाक पांच वर्णवाळां, यावद् - आठ स्पर्शवाळां छे, अने केटलाक पांच वर्णवाला अने चार स्पर्शवाळ . तथा सर्व द्रव्योमांना केटलाक एक वर्णवाळां, एक दगंधवाळां, एक रसवाळां अने बे स्पर्शवाळां के, वळी सर्व द्रव्योमांना केटलाक वर्णरहित, यावद्-स्पर्शरहित छे, ए प्रमाणे सर्व प्रदेशो, *सर्व पर्यायो अने अतीतकाळ पण वर्णरहित, यावत् स्पर्शरहित कह्या छे. ए प्रमाणे भविष्यकाळ अने सर्वकाळ पण जाणवो.।।४५०॥ जीवे ण भंते ! गम्भं वक्कममाणे कतिवन्नं कतिगंधं कतिरसं कतिफासं परिणाम परिणमही, गोयमा! पंचवन्नं | पंचरसं दुगंधं अट्ठफासं परिणाम परिणमइ ॥ (सूत्रं ४५१) [प्र.] हे भगवन् ! गर्भमा उत्पन्न थतो जीव केटला वर्णवाळा, केटला गंधवाळा, केटला रसवाळा अने केटला स्पर्शवाळा ABSCASSES For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy