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छे, यावत् स्पर्शरहित छे; पण विशेप ए छे के, पुद्गलास्तिकाय पांच वर्णवाळो पांच रसाळो, वे गंधवाळी अने आठ स्पर्शवाळो व्याख्या होय छे. १ ज्ञानावरणीय, यावद्-८ अंतरायकर्म-ए बधां चार स्पर्शवाळां . [प्र.] हे भगवन् ! कृष्णालेश्या केटला वर्णवाली
४।१२शतके प्रज्ञप्तिः छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! द्रव्यलेश्यानी अपेक्षाए पांच वर्णवाळी, यावद्-आठ स्पर्शवाळी कही छे अने भावलेश्यानी
| उद्देशः५ ॥१०७९॥
2॥१०७९॥ अपेक्षाए वर्णादिरहित छे. ए प्रमाणे यावत्-शुक्ललेश्या सुधी जाणवू. १ सम्यग्दृष्टि, २ मिथ्यादृष्टि ३ सम्यग्मिथ्यादृष्टि, ४-७ चक्षुदर्शन वगेरे चार दर्शन. ८-१२ आमिनिबोधिक (मतिज्ञान) वगेरे पांच ज्ञान, यावद्-विभंगज्ञान, आहारसंज्ञा, यावत्-परिग्रहसंज्ञा-ए वां वर्णादिरहित छे. औदारिक शरीर, यावत् तैजस शरीर-ए वां-आठ स्पर्शवाला छे. कार्मणशरीर, मनयोग अने वच नयोग चार स्पर्शवाला छे, काययोग आठ स्पर्शवाळो के. साकारोपयोग अने अनाकारोपयोग-ए बन्ने वर्णादिरहित छे. [प्र.] हे भगवन् ! बधां द्रव्यो केटला वर्णवाला छे ?-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! सर्व द्रव्योमांना केटलाक पांच वर्णवाळां, यावद् -
आठ स्पर्शवाळां छे, अने केटलाक पांच वर्णवाला अने चार स्पर्शवाळ . तथा सर्व द्रव्योमांना केटलाक एक वर्णवाळां, एक दगंधवाळां, एक रसवाळां अने बे स्पर्शवाळां के, वळी सर्व द्रव्योमांना केटलाक वर्णरहित, यावद्-स्पर्शरहित छे, ए प्रमाणे सर्व प्रदेशो, *सर्व पर्यायो अने अतीतकाळ पण वर्णरहित, यावत् स्पर्शरहित कह्या छे. ए प्रमाणे भविष्यकाळ अने सर्वकाळ पण जाणवो.।।४५०॥
जीवे ण भंते ! गम्भं वक्कममाणे कतिवन्नं कतिगंधं कतिरसं कतिफासं परिणाम परिणमही, गोयमा! पंचवन्नं | पंचरसं दुगंधं अट्ठफासं परिणाम परिणमइ ॥ (सूत्रं ४५१)
[प्र.] हे भगवन् ! गर्भमा उत्पन्न थतो जीव केटला वर्णवाळा, केटला गंधवाळा, केटला रसवाळा अने केटला स्पर्शवाळा
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