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ध्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥६६४॥
| केटली क्रियावाळो होय? [उ०] हे गौतम ! पूर्वनी पेठे (त्रण, चार के पांच चियावालो होय) ए प्रमाणे यावत् वैमानिको जाणवा.
परन्तु मनुष्यो जीवोनी पेठे जाणवा. [प्र०] हे भगवन् ! एक जीव (परकीय) औदारिक शरीरोने आश्रयी केटली क्रियावाळो होय?1८शतक [[उ०] हे गौतम ! ते कदाच त्रण क्रियावाळो होय, यावत् कदाच अक्रिय होय.
लै उद्देशः६ । नेरइए णं भंते! ओरालियसरीरेहिंतो कतिकिरिए?,एवं एसो जहा पढमो दंडओ तहा इमोवि अपरिएसो भाणि- ॥६६४॥ यवो जाव वेमाणिए, नवरं मणुस्से जहा जीवे | जीवा णं भंते ओरालियसरीराओ कतिकिरिया?,गोयमा! सिय तिकिरिया जाव सिय अकिरिया, नेरइया णं भंते ! ओरालियसरीराओ कतिकिरिया?,एवं एसोवि जहा पढमो दंडओ तहा भाणियब्वो जाव वेमाणिया, नवरं मणुस्सा जहा जीवा। जीवा णं भंते ! ओरालियसरीरेहिंतो कतिकिरिया, गोयमा! तिकिरियावि चउकिरियावि पंचकिरियावि अकिरियावि, नेरइया णं भंते ! ओरालियसरीरेहितो कइकिरिया?, गोयमा ! तिकिरियावि चउकिरियावि पंचकिरियावि एवं जाव वेमाणिया, नवरं मणुस्सा जहा जीवा ॥
प्र०] हे भगवन् ! एक नैरयिक (पर संबन्धी) औदारिक शरीरोने आश्रयी केटली क्रियावाळो होय ? [उ०] हे गौतम ! जेम आ प्रथम दंडक (सू. १८) को छे तेम आ सघळा दंडको पण यावत् वैमानिक सुधी कहेवा, परन्तु मनुष्यो जीवोनी पेठे जाणवा. [प्र०] हे भगवन् ! जीवो (परसंबन्धी) एक औदारिक शरीरने आश्रयी केटली क्रियावाळा होय ? [उ०] हे गौतम ! कदाच त्रण क्रियावाळा होय, यावत् कदाच क्रियारहित होय. [प्र०) हे भगवन् ! नरयिको ( पर संबन्धी) औदारिक शरीरने आश्रयी केटली क्रियावाळा होय ? [उ०] हे गौतम ! जेम प्रथम दंडक (सू. १८) कडो छे तेनी पेठे यावत् वैमानिक सुधी आ दंडक पण कहेवो,
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