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८ शतके | उद्देशः१ १॥५७९॥
ककल्पातीत वैमानिक देवो नव प्रकारे कद्या छे; ते आ प्रमाणे-अधस्तन अधस्तन (नीचेनी त्रिकमां नीचे रहेला) अवेयककल्पातीत व्याख्या
भावमानिक देवो, यावत् उपर उपर (उपरनी त्रिकमा उपरना) वेयक कल्पातीत देवो. प्रज्ञप्तिः
४ अणुत्तरोववाइयकप्पातीतगवेमाणियदेवपंचिंदियपयोगपरिणया ण भंते ! पोग्गला कइविहा पण्णत्ता ?,
गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता, तंजहा-विजयअणुत्तरोववाइय. जाव परिण जाव मम्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइमायदेवपाँचदिय जाव परिणया ॥ सुहमपुढविकाइयएगिदियपयोगपरिणया णं भंते ! पोग्गला कइविहा
|पण्णत्ता ?, गोयमा! दुविहा पण्णत्ता, [ केई अपज्जत्तगं पढम भणंति पच्छा पज्जत्तगं, ] पज्जत्तग| सहुमपुढविकाइय जाव परिणया य अपजत्तसुहुमपुढविकाइय जाव परिणया य, बादरपुढचिकाइयएगिंदिय. जाव वणस्सइकाइया, एकका दुविहा पोग्गला-सुहुमा य बादरा य, पजत्तगा अपजत्तगा य
भाणियव्वा । बेइंदियपयोगपरिणया णं पुच्छा, गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-पजत्तगदियपयोगपरिणया | य अपज्जत्तग जाब परिणया य, एवं तेइंदियावि, एवं चउरिंदियावि। रयणप्पभापुढविनेरइय० पुच्छा, | | गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-पजत्तगरयणप्पभापुढवि जाव परिणया य अपजत्त गजावपरिणया काय, एवं जाव अहेसत्तमा । | [प्र०] अनुत्तरोपपातिककल्पातीतवैमानिकदेवपंचेन्दियप्रयोगपरिणत पुद्गलो केटला प्रकारना कह्या छ ? [उ०] हे गौतम ! पांच प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-विजयअनुत्तरोपपातिकदेवप्रयोगपरिणत, यावत् सर्वार्थसिद्धअनुत्तरोपपातिकदेवपंचेन्द्रियप्रयो
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