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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
॥६३४॥
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जे नाणी ते अत्थेगतिया तिन्नाणी अत्थेगतिया चउन्नाणी, जे तिन्नाणी ते आभिणिबोहिय० सुवनागी ओहिंनाणी, जे चउणाणी ते आभिणिबोहियणनाणी जाव मणपज्जवनाणी, जे अन्नाणी ते नियमातिअन्नाणी, तंजा| मइअन्नाणी सुयअन्नाणी विभंगनाणी, केवलदंसणअणागारोवउत्ता जहा केवलनाणलद्धिया ||
[प्र० ] हे भगवन् ! साकारउपयोगवाळा जीवो शुं ज्ञानी होय के अज्ञानी होय ? [उ०] हे गौतम! तेओने पांच ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए ( विकल्पे ) होय छे. [प्र० ] हे भगवन् ! आभिनिबोधिकसाकारोपयोगवाळा जीवो शुं ज्ञानी होय के अज्ञानी होय ? [उ०] हे गौतम! तेओने भजनाए चार ज्ञान होय छे. ए प्रमाणे श्रुतज्ञानसाकारउपयोगबाळा जीवो पण जाणवा अवधिज्ञानसाकार उपयोगबाळा जीवोने अवधिज्ञानलब्धिवाळानी पेठे ( सू० ७१.) (त्रण के चार ज्ञान ) जाणवा. मनःपर्यवज्ञान साकारउपयोगवाळा जीवोने मनःपर्यवज्ञानलब्धिवाळानी पेठे (सू० ७३ ) मति, श्रुत अने मन:पर्यय ए त्रण ज्ञान, के अवधिसहित चार ज्ञान जाणवा. केवलज्ञान साकारउपयोगवाळा जीवो केवलज्ञानलब्धिवाळानी पेठे ( सू० ७५. ) एक केवलज्ञान सहित जाणवा. मतिअज्ञानसाकारोपयोगवाळा जीवोने भजनाए त्रण अज्ञान होय छे. ए प्रमाणे श्रुतअज्ञानसाकारोपयोगवाळा जीवो पण जाणवा. विभंगज्ञा| नसाकारोपयुक्त जीवोने अवश्य त्रण अज्ञान होय छे. [प्र०] हे भगवन् ! अनाकारोपयोगवाळा जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे ? [[अ०] हे गौतम! तेओने पांच ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. ए प्रमाणे चक्षुदर्शन अने अचक्षुदर्शनअनाकारोपयोगवाळा जीवो पण जाणवा. परन्तु तेओने चार ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे, [प्र० ] अवधिदर्शनअनाकारोपयोगवाळा जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे ? [अ०] हे गौतम! तंओ ज्ञानी पण छे अने अज्ञानी पण छे, जेओ ज्ञानी छे तेओमा केटलाक त्रण
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८ शतके उद्देशः २ ।।६३४।।