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८ शतके
व्याख्याप्रज्ञतिः ॥६३२।।
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इंदियलद्धियाणं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी?, गोयमा! चत्तारि णाणाई तिन्नि य अन्नाणाई भयणाए, IPL |तस्स अलद्धियाणं पुच्छा, गोयमा! नाणी, नो अन्नाणी, नियमा एगनाणी केवलनाणी, सोइंदियलद्धियाणं जहा इंदियलद्विया, तस्स अलद्धियाणं पुच्छा, गोयमा! नाणीवि अन्नाणीवि, जे नाणी ते अत्थेगतिया दुन्नाणी
उद्देशः२ अत्थेगतिया एगन्नाणी, जे दुन्नाणी ते आभिणियोहियनाणी सुयनाणी जे एगनाणी ते केवलनाणी, जे अन्नाणी ते ॥६३२।। नियमा दुअन्नाणी, तंजहा-मइअन्नाणी य सुयअन्नाणी य, चक्खिदिय घाणिदियाणं लधियाणं अलद्धियाण य जहेव सोइंदियस्स, जिभिदियलद्धियाणं चत्तारि णाणाई तिन्नि य अनाणाणि भयणाए, तस्सअलद्धियाणं पुच्छा, गोयमा! नाणीवि अन्नाणीवि, जे नाणी ते नियमा एगनाणी केवलनाणी, जे अन्नाणी ते नियमा दुअन्नाणी, तंजहा-मइअन्नाणी य सुयअन्नाणी य, फासिंदियलद्धियाणंअलद्धीयाणं जहा इंदियलद्धिया य अलद्धिया य ।। (सूत्रं ३१९)॥ | [प्र०] हे भगवन् ! इन्द्रियलब्धिवाळा जीवो शुं ज्ञानी डे के अज्ञानी छ ? [उ०] हे गौतम ! तेश्रो भजनाए चार ज्ञान अने। | त्रण अज्ञान होय छे. [प्र.] इन्द्रियलब्धिरहित जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी ? [उ.] हे गौतम ! तेओ ज्ञानी छे, पण अज्ञानी नथी. ते अवश्य एक केवळज्ञानवाला छे. बोटेन्द्रियलब्धिवाळा इन्द्रियलब्धिवाळानी पेठे (मृ० ८६.) जाणवा. [प्र०] श्रोत्रेन्द्रियलब्धिरहित जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [उ०Jहे गौतम ! तेओ ज्ञानी पण छे, अने अज्ञानी पण छे. जेओ ज्ञानी छे तेओमां | केटलाक एकज्ञानवाळा . जेओ बेज्ञानवाळा ओ ‘आभिनिवोधिकज्ञानी अने श्रुतज्ञानी छे अने जेओ एकज्ञानी ले तेश्रो एक
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