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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः ।।६१९ ॥
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एक केवलज्ञानवाळा छे. ॥ ३१७ ॥
दो
निरयगइया णं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी ?, गोयमा ! माणीवि अन्नाणीवि, तिन्नि नाणारं नियमा, तिन्नि अन्नाणाई भयणाए । तिरियगइया णं भंते! जीवा किं नाणी अन्नाणी ?, गोयमा ! दो नाणा दो | अन्नाणा नियमा । मणुस्सगइया णं भंते! जीवा किं नाणी अन्नाणी ?, गोयमा ! तिनि नाणाई भयणाए, अन्नाणारं नियमा, देवगतिया जहां निरयगतिया । सिद्धगतिया णं भंते ! जहा सिद्धा १ ॥ सइंदिया णं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी १, गोगमा ! चत्तारि नाणारं, तिन्नि अन्नाणाई भगणाए । एगिंदिया णं भंते! जीवा किं नाणी० १, जहा पुढविकाइया बेइंदियतेइंदियचडरिंदियाणं दो नाणा दो अन्नाणा नियमा । पंचिंदिया जहां मदिया । अनिंदिया णं भंते! जीवा किं नाणी ०?, जहा सिद्धा २ || सकाइया णं भंते! जीवा किं नाणी अन्नाणी ?, गोयमा ! पंच नाणाणि, तिन्नि अन्नाणाई भगणाए । पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया नो नाणी, अनाणी, नियमा दुअन्नाणी, तंजहा-मतिअन्नाणी य सुयअन्नाणी य, तसकाइगा जहा सकाइया ।
[प्र०] हे भगवन् ! निरयगतिक - नरकगतिमां जता जीवो शुं ज्ञानी होय छे के अज्ञानी होय छे ? [उ०] हे गौतम! ते ज्ञानी पण होय छे अने अज्ञानी पण होय छे, ( जेओ ज्ञानी छे ) तेओने अवश्य त्रण ज्ञान होय छे अने (जे अज्ञानी छे तेओने ) त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. [प्र०] हे भगवन् ! तिर्यचगतिक-तिर्यंचगतिमां जता जीवो शुं ज्ञानी होय छे के अज्ञानी होय छे? [उ० ] हे गौतम! तेओने अवश्य बे ज्ञान अने वे अज्ञान होय छे. [प्र०] हे भगवन् ! मनुष्यगतिक - मनुष्यगतिमां जता जीवो-शुं ज्ञानी
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८ शतके उद्देशः २
।।६१९।।