________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शतके उदेश // 835 // करे छे. यावत् ते पर्षद् (धर्मोपदेश श्रवण करीने) पाछी गई. व्याख्या ना तए णं से जमाली खत्तियकुमारे समणस्स अगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा निसम्म हट्ठ जाव उट्ठाए | प्राप्ति 18| उद्वेइ उट्ठाए उद्वेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता एवं बयासी-सहहामि णं भंते ! निग्गंध 8 // 835 // पावयणं पत्तयामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं अन्भुढेमि भंते! निग्गंथं पाव यणं एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अ वितहमेयं भंते! असंदिद्धमेयं भंते !जाव से जहेयं तुझे वदह, जं नवरं देवाणुप्पिया! अम्मापिपरो आपुच्छामि, तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अतिय मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब-18 यामि, / अहासुहं देवणुप्पिया!मा पडिबन्धं // 383 // | त्यारबाद ते जमालि नामे क्षत्रियकुमार श्रमण भगवान् महावीरनी पासेथी धर्म ने सांभळी, हृदयमा अवधारीने हर्पित अने संतु|ष्टहृदयवाळो थयो, अने यावत् उभो थइने श्रमण भगवंत महावीरनी त्रण वार प्रदक्षिणा करी, वंदन-नमस्कार करी तेणे आ प्रमाणे कडु- हे भगवन् ! हुं निग्रंथना प्रवचननी श्रद्धा करूं छु, हे भगवन् ! हुं निग्रंथना प्रवचन उपर विश्वास करूं छु, हे भगवन् ! हुं निग्रंथना प्रवचन उपर रुचि करूं छु, अने हे भगवन् ! निग्रंथना प्रवचनानुसारे वर्तवाने तैयार थयो छु. वळी हे भगवन् ! जे तमे उपदेशो छो ते निग्रन्थ प्रवचन एम ज छे, हे भगवन् ! तेमज के. हे भगवन् ! सत्य छे, हे भगवन् ! असंदिग्ध (निश्चित) छे, परन्तु हे देवानुप्रिय ! मारा माता पितानी रजा मागीने हुँ आप देवानुप्रियनी पासे मुंड-दीक्षित थइ गृहवासनो त्याग करी अनगारिकपणाने स्वीकारवा इच्छु छु.' हे देवानुप्रिय ! जेम मुख उपजे तेम करो, प्रतिबंध न करो.'॥ 383 // (अनुसंधान भाग चोथामां ) RAMANARASILA For Private and Personal Use Only