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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजाए अंतियं सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिजइ सेसं तं चेव जाव सव्वदुक्खप्पहीणा ॥(सूत्रं 382) / ___हवे ते देवानंदा ब्राह्मणी श्रमण भगवंत महावीरनी पासे धर्मने सांभळी, हृदयमा अवधारी आनन्दित अने संतुष्ट थइ, अने का९सके श्रमण भगवंत महावीरने त्रणवार प्रदक्षिणा करी यावत् नमस्कार करी आ प्रमाणे बोली-'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते उद्देशा 829 // एमज छ,'-ए प्रमाणे ऋषभदत्तनी जेम यावत् तेणे भगवंत कथित धर्म कहो. त्यारबाद श्रमण भगवान महावीर पोते देवानंदा ब्राह्म- // 829 |णीने दीक्षा आपे छे, दीक्षा आपीने पोते आर्यचंदना नामे आर्याने शिष्यापणे सोपे छे. त्यारवाद ते आर्यचंदना आर्यां पोतेज ते || | देवानंदा ब्राह्मणीने दीक्षा आपे छे, ग्वयमेव मुंडे छे, स्वयमेव शिक्षा आपे छे ए प्रमाणे देवानंदा ऋषभदत्त ब्राह्मणनी पेठे आर्यचंहैदनाना आ आवा प्रकारना धार्मिक उपदेशने सम्यक् प्रकारे स्वीकार करे छे, अने तेनी आज्ञा प्रमाणे वर्ते छे, यावत् संयमवडे प्रवर्ते Pछे. त्यारपछी देवानंदा आर्या आर्यचंदना आर्यानी पासे सामायिकादि अगीयार अंगोनुं अध्ययन करे छे. बाकीर्नु पूर्व प्रमाणे जाणवू,12 4. यावत् ते (देवानंदा) सर्वदुःखथी मुक्त थाय छे. // 382 // | तस्स णं माहणकुंडग्गामस्स नगरस्स पञ्चत्थिमेणं एत्थ णं वत्तियकुंडग्गामे नाम नगरे होत्था, वन्नओ, तत्व मं खत्तियकुंडग्गामे नयरे जमालीनाम खत्तियकुमारे परिवसति अढे दित्ते जाव अपरिभूए उपि पासायवरगए फुडमाणेहिं मुइंगमत्वएहिं बत्तीसतिबद्धेहिं नाडएहिं णाणाविहवरतरुणीसंपउत्तेहिं उवनचिजमाणे उवनबिजमाणे उबगिज्जमाणे 2 उवलालिज्जमाणे उव. 2 पाउसवासारत्तसरदहेमंतवसंतगिम्हपज्जंते छप्पि उऊ जहाविभवेणं माणमाणे 2 कालं गालेमाणे इट्टे सफरिसरसरूवगंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पचणुन्भवमाणे विहरह। KHATRE NALISAMACHAR For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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