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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.arg Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रजाप्तिः 818 // 9 शतके उद्देशान // 1 // [प्र०] हे भगवन् ! पृथिवीकायिको स्वयं उत्पन्न थाय छे ?-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गांगेय ! पृथिवीकायिको स्वयं उत्पन्न | थाय छे पण अस्वयं उत्पन्न थाता नथी. [प्र०] हे भगवन् ! एम शा हेतुथी कहो छो के 'पृथिवीकायिको स्वयंउत्पन्न थाय छे ? [[उ०] हे गांगेय ! कर्मना उदयथी, कर्मना गुरुपणाथी, कर्मना भारथी, कर्मना अत्यन्त भारथी, शुभ अने अशुभ कर्मोना उदयथी, | शुभ अने अशुभ कर्मोना विषाकथी अने शुभाशुभ कर्मोना फलविपाकथी पृथिवीकायिको स्वयं उत्पन्न थाय छे, पण यावद् अस्वयं उत्पन्न थता नथी. माटे हे गांगेय! ते हेतुथी एम कहुं छु के-यावत् 'पृथीवीकायिको स्वयं उत्पन्न थाय छे.' ए प्रमाणे यावत् मनुयो सुधी जणवू. जेम असुरकुमारोने का तेम वानव्यंतर, ज्योतिषिक अने वैमानिको संबन्धे कहे. माटे हे गांगेय! ते हेतुथी एम कहुं छु के-यावत् 'वैमानिको स्वयं उत्पन्न थाय छे, पण अस्वयं उत्पन्न थता नथी.' // 378 / / ट्रा तप्पभिई च णं से गंगेये अणगारे समणं भगवं महावीरं पञ्चभिजाणइ सबन्नु सव्वदरिसी, तए णं से गंगेये अणगारे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ करेत्ता वंदइ नमंसह वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी इच्छामि णं भंते ! तुझं अंतियं चाउल्लामाओ धम्माओ पंचमहव्वइयं एवं जहा कालासवेसियपुत्तो / तहेव भाणियब्वं जाव सब्वदुक्खप्पहीणे // सेवं भंते ! सेवं भंते! // (सूत्रं 379) // गंगेयो समत्तो // 9 // 32 // त्यार पछी श्रीगांगेय अनगार श्रमण भगवन् महावीरने सर्वज्ञ अने सर्वदर्शी जाणे छे. त्यारबाद ते गांगेय अनगार श्रमण भगवंत महावीरने त्रण वार आदक्षिणा प्रदक्षिणा करे छे, करीने वांदे छे, नमे छे; वांदीने, नमीने तेणे एम कछु के-हे भगवन् / तमारी पासे चार महाव्रत धर्मथी पांच महाव्रतधर्मने ग्रहण करवा इच्छु छु. ए प्रमाणे बधुं कालासवेसिक पुत्रनी पेठे यावत् ते 'सर्व LEARNORNERASHAK For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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