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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 9 शतके व्याख्याप्राप्ति // 817 // उद्देशा // 817 // | उदयथी, अशुभ कर्मोना विपाकथी अने अशुभ कर्मोना फल-विपाकथी नैरयिको नैरयिकोमा स्वयं उत्पन्न थाय छे, पण नैरयिको नैरयिकोमा अस्वयं उत्पन्न थता नथी; ते हेतुथी हे गांगेय ! एम कहेवाय छे के यावत् 'तेओ स्वयं उत्पन्न थाय हे.' [प्र.] हे भगवन् ! असुरकुमारो स्वयं (असुरकुमारपणे उत्पन्न थाय छे ?) इत्यादि प्रश्न. [उ.] हे गांगेय ! असुरकुमारो स्वयं उत्पन्न थाय छ, | पण अस्वयं उत्पन्न थता नथी.[प्र.] हे भगवन् ! एम शा हेतुथी कहो छो के तेओ 'स्वयं यावद् उत्पन्न थाय छे' 1 [उ०] हे गांगेय ! कर्मना उदयथी, (अशुभ) कर्मना उपशमथी, अशुभ कर्मना अभावथी, कर्मनी विशोधिथी, कर्मनी विशुद्धिथी, शुभ कर्मोना उदयथी, शुभ कर्मोना विपाकथी अने शुभ कर्मोना फल-विपाकथी असुरकुमारो असुरकुमारपणे स्वयं उत्पन्न थाय छे, पण असुरकुमारो असुरकुमारपणे अस्वयं उत्पन्न थता नथी. माटे हे गांगेय ! ते हेतुथी एम कहेवाय ले के, यावत् 'उत्पन्न थाय . ए प्रमाणे यावत् स्तनितकुमारो सुधी जाणवू. ___ सयं भंते! पुढविक्काइया० पुच्छा, गंगेया ! सयं पुढविकाइया जाव उववजति नो असयं पुच्छा जाव उववज्जंति, से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ जाव उववजति !, गंगेया! कम्मोदएणं कम्मगुरुयत्ताए कम्मभारियत्ताए कम्मगुरुसंभारियत्ताए सुभासुभाणं कम्माणं उदएणं सुभासुभाणं कम्माणं विवागणं सुभासुभाणं कम्माणं फलविवागणं सयं पुढवि काइया जाव उववज्जति नो असयं पुढविकाइया जाव उववज्जति, से तेणटेणं जाव उववज्जति, एवं जाव मणुस्सा, पणमंतरजोइसिया वेमाणिया जहा असुरकुमारा, से तेणतुणं गंगेया! एवं वुच्चइ सयं वेमाणिया जाव उववज्जति नो असयं जाव उववज्जति / / (सूत्रं 378) // For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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