________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रशासि |9 शतके उद्देश मा॥७९॥ // 797 // [प्र०] हे भगवन् ! नव नैरयिको नैरयिकप्रवेशनकवडे प्रवेश करता शुंरत्नप्रभामा होय-इत्यादि प्रश्न. [उ.] हे गांगेय ते नव नैरयिको 1 रत्नप्रभामा होय, अने ए प्रमाणे यावद् 7 अधःसप्तम पृथिवीमां पण होय. अथवा 'एक रत्नप्रभामां अने आठ शर्कराप्रभामां पण होय' इत्यादि आठ नैरयिकोनो जेम द्विकसंयोग त्रिकसंयोग, चतुष्कसंयोग, पंचकसंयोग, पद्कसंयोग,) यावत् सप्तकसंयोग कह्यो तेम नव नैरयिकोनो पण कहेवो. परन्तु विशेष ए छे के एक एक नैरयिकनो अधिक संचार करवो. बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणवू. तेनो छेल्लो भांगो-अथवा त्रण रत्नप्रभामां एक शर्कराप्रभामां एक वालुकाप्रभामां यावत् एक अधःसप्तम नरकमां होय. दस भंते ! नेरइया नेरइयपवेसणएणं पविसमाणा पुच्छा, गंगेया! रयणप्पभाए होजा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा 7 अहवा एगे रयणप्पभाए नव सकरप्पभाए होजा एवं दुयासंजोगो जाव सत्तसंजोगो य जहा नवण्हं नवरं एकेको अभहिओ संचारेयव्वो सेसं तं चेव अपच्छिमआलावगो अहवा चत्तारि रयण. एगे सकरप्पभाए जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा // [प्र०] हे भगवन् ! दश नैरयिकोनैरयिकप्रवेशनकवडे प्रवेश करता शुं 1 रत्नप्रभामां होय के यावद् 7 अधःसप्तम पृथिवीमां होय ? [उ०Jहे गांगेय ! ते दश नैरयिको 1 रत्नप्रभामां पण होय, अने ए प्रमाणे यावत् 7 अधःसप्तम पृथिवीमां पण होय. अथवा एक रत्नप्रभामां अने नव शर्कराप्रभामां होय-इत्यादि द्विकसंयोग (तथा त्रिकसंयोग, चतुष्कसंयोग पंचकसंयोग, षट्कसंयोग) यावत् सप्तकसंयोग जेम नव नारकनो कह्यो तेम दस नैरयिकोनो पण जाणवो. परन्तु विशेष ए छे के एक एक नैरयिकनो अधिक संचार करवो. बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणवू. तेनो छेल्लो भंग-अथवा चार रत्नप्रभामा एक शर्कराप्रभामां-यावत् एक अधःसप्तमनरकमां होय. For Private and Personal Use Only