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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsari Gyarmandir उद्देश // 79 // [प्र०] हे भगवन् ! आठ नैरयिको नैरयिकप्रवेशनकवडे प्रवेश करता शुं रत्नप्रभामां होय ?-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गांगेय ! 41 रत्नप्रभामां पण होय; यावद् 7 अधःसप्तम पृथिवीमां पण होय. अथवा 1 'एक रत्नप्रभामां अने सात शर्कराप्रभामां होय.' व्याख्या + ए प्रमाणे जेम सात नैरयिकोनो द्विकसंयोग, त्रिकसंयोग, चतुष्कसंयोग, पंचसंयोग अने षद्कसंयोग कह्यो तेम आठ नैरयिकोनो पण प्रज्ञप्तिः कहेवो. परन्तु विशेष ए के एक एक नैरयिकनो अधिक संचार करवो. बाकी वर्षा छ सयोग सुधी पूर्व प्रमाणे जाणवू. (छेल्लो विकल्प-) // 796 // | अथवा त्रण शर्कराप्रभामा एक बालुकाप्रभामां यावत् एक अधःसप्तम नरकमां होय. 1 अथवा एक रत्नप्रभामां यावत् एक तमामां अने बे अधःसप्तम पृथिवीमां होय. 2 अथवा एक रत्नप्रभामां यावत् वे तमामां अने एक अधःसप्तम पृथिवीमा होय. ए प्रमाणे सर्वत्र संचार करवो. यावत् 7 अथवा वे रत्नप्रभामां एक शर्कराप्रभामां यावद् एक अधःसप्तम पृथिवीमां होय. (ए प्रमाणे 7, 147, 730, 1225, 735, 147 अने 7. ए बधा मळीने आठ जीवने आश्रयी 3003 विकल्पो थाय छे.) असंयोगाः . नव भंते ! नेरतिया नेरतियपवेसणएणं पविसमाणा किं पुच्छा, गंगेया! रयणप्पभाए वा होजा विकस० 164 त्रिकसं 980 || जाव अहेसत्तमाए वा होजा अहवा एगे रयण अट्ट सक्करप्पभाए होजा एवं दुयासंजोगो जाव सः चतुष्कसं० 1960 त्तगसंजोगे य जहा अट्ठण्हं भणिय तहा नवण्हपि भाणियव्वं नवरं एक्कको अभहिओ संचारेयव्वो पंचकर सेसं तं चेव पच्छिमो आलावगो अहवा तिन्नि रयण० एगे सक्कर० एगे वालुय जाब एगे अहेसत्त- सप्तकसं० 28 माए वा होजा॥ SCANARRASSAGARAA 5%25ARSA षटकर्स०३९२ 5005 For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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