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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या-1 प्राप्ति // 789 // 9 शतके उद्देशा मा॥७८९॥ SAKHARATALARY रयण० एगे सकर० एगे वालुय. एगे पंकप्पभाए होजा एवं जाव अहवा दो रयण० एगे सकर० एगे वालुय० एगे अहेसत्तमाए होज्जा 16 अहवा एगे रयण० एगे सक्कर० एगे पंक० दो धूमप्पभाए होजा एवं जहा चउण्हं चउकसंजोगो भणिओ तहा पंचण्हवि चउक्कसंजोगो भाणियचो, नवरं अब्भहियं एगो संचारेयव्यो, एवं जाव अहवा दो पंक० एगे धूम. एगे तमाए एगे अहेसत्तमाए होजा॥ अहीं बेनो संचार करवो. बाकी सर्व पूर्वोक्त जाणवू यावत अथवा त्रण धूमप्रभामा एक तमामां अने एक अधःसप्तम नरकमा होय. (210). अथवा एक रत्नप्रभामां एक शकेराप्रभामा एक वालुकाप्रभामां अने बे पंकप्रभामा होय. ए प्रमाणे यावत् 4 अथवा एक रत्नप्रभामां एक शकराप्रभामां एक वालुकाप्रभामां अने बे अधःसप्तम पृथिवीमां होय. (ए चार विकल्प थया.)१ अथवा एक रत्नप्रभामां एक शर्कराप्रभामां वे वालुकाप्रभामां अने एक पंकप्रभामा होय. ए प्रमाणे यावत् 4 एक रत्नप्रभामां एक शर्कराप्रभामां बे वालुकाप्रभामां अने एक अधःसप्तम नरकपृथिवीमां होय. ( भंग.)१ अथवा एक रत्नप्रभामां बे शर्कराप्रभामा एक वालुकाप्रभामां अने एक पंकप्रभामा होय. ए प्रमाणे यावत् 4 अथवा एक रत्नप्रभामां बेशर्कराप्रभामां एक वालुकाप्रभामां अने एक अधःसप्तम नरकपृथिवीमा होय. (4 भंग.) ? अथवा बे रत्नप्रभामां एक शर्कराप्रभामा एक वालुकाप्रभामां अने एक पंकप्रभामां होय. ए प्रमाणे यावत् 4 अथवा बे रत्नप्रभामां एक शर्कराप्रभामा एक बालुकाप्रभामां अने एक अधःसप्तम नरकपृथिवीमां होय. (4 भंग) 1 अथवा | एक रत्नप्रभामा एक शर्कराप्रभामा एक पंकप्रभामां अने बे धूमप्रभामा होय. ए प्रमाणे जेम चार नैरयिकोनो चतुःसंयोग कह्यो, तेम पांच नैरयिकोनो पण चतुःसंयोग कहेवो. परन्तु अहीं एकनो अधिक संचार (योग) करवो. ए प्रमाणे यावत् अथवा बे पंकप्रभामां एक For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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