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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥७७२॥
९ शतके उद्देशा५ ॥७७२॥
|प्रश्न. [उ०] हे गांगेय ! पृथिवीकायिक जीवो निरंतर च्यवे छे पण सांतर च्यवता नथी. ए प्रमाणे यावत् वनस्पतिकायिक जीवो सान्तर च्यवता नथी, पण निरन्तर च्यवे छे. [40] हे भगवन् ! बेइन्द्रिय जीवो सांतर च्यवे छे के निरंतर च्यवे छ ? [उ.] हे गांगेय ! बेइन्द्रिय जीवो सांतर पण च्यवे के अने निरंतर पण च्यवे के. ए प्रमाणे यावद् वानव्यन्तर सुधी जाणवू. [प्र०] हे भग| वन् ! ज्योतिषिक देवो सांतर च्यवे छे ?-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गांगेय ! ज्योतिषिक देवो सांतर पण च्यवे छे अने निरंतर पण | च्यवे हे. ए प्रमाणे यावद् वैमानिक देवो सुधी जाणवू. ॥ ३७२ ।।
कविहे णं भंते! पवेसणए पन्नत्ती, गंगेया! चउविहे पवेसणए पन्नत्ते, तंजहानेरइयपवेसणए तिरियजो|णियपवेसणए मणुस्सपवेसणए देवपवेसणए । नेरइयपवेसणए णं भंते ! कहविहे पन्नत्ते?, गंगेया! सत्तविहे
पन्नत्ते, तंजहा-रयणप्पभापुढविनेरइयपवेसणए जाव अहेसत्तमापुढविनेरइयपवेसणए । एगे णं भंते ! नेरइए | नेरइयपवेसणएणं पविसमाणे किं रयणप्पभाए होजा सकरप्पभाए होजा जाव अहेसत्तमाए होजा?, गंगेया! रयणप्पभाए वा होजा जाव अहेसत्तमाए वा होजा। दो भंते ! नेरइया नेरइयपवेसणएणं पविममाणा किं रयण. प्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए होजा?, गंगेया! रयणप्पभाए वा होजा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा, अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए होज्जा अहवा एगे रयणप्पभाए एगे वालुयप्पभाए होजा जाव एगे रयणप्प. भाए एगे अहेसत्तमाए होजा, अहवा एगे सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए होजा जाव अहवा एगे सक्करप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होजा, अहवा एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए होजा एवं जाव अहवा एगे बालुयप्पभाए
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