________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
का
व्याख्याप्राप्ति ॥७७१॥
ए प्रमाणे कयु-[प्र०] हे भगवन् ! नैरयिको सांतर (अन्तरसहित) उत्पन्न थय छे के निरंतर (अन्तर शिवाय) उत्पन्न थाय छे ? [उ०] हे गांगेय ! नैरयिको सांतर पण उत्पन्न थय छे अने निरंतर पण उत्पन्न थाय छे. [प्र.] हे भगवन् ! असुरकुमारो सांतर उत्पन्न थाय छे के निरंतर उत्पन्न थाय हे ? [उ०] हे गांगेय ! अमुरकुमारो सांतर पण उत्पन्न थाय छे, अने निरंतर पण उत्पन्न
९ शतके थाय हे. ए प्रमाणे यावत् स्तनितकुमारो सुधी जण. [प्र०] हे भगवन् ! पृथिवीकायिक जीवो सान्तर उत्पन्न थाय छे! [उ०] हे |
Pउद्देशा५ गांगेय ! पृथिवीकायिक जीवो सन्तर उत्पन्न थता नथी, पण निरंतर उत्पन्न थय छे. ए प्रमाणे यावद् वनस्पतिकायिक जीवो सुधी
७७१॥ |जाणवं. वे इन्द्रिय जीवोथी मांडी यावद् वैमानिको नरयिकोनी पेठे (सू० २) जाणवा. ॥ ३७१ ॥
संतरं भंते! नेरइया उववहति निरंतरं नेरइया उववदृति !, गंगेया! संतरंपि नेरइया उववति | निरंतरंपि नेरइया उबवति, एवं जाव थणियकुमारा, संतरं भंते ! पुढविकाइया उववदंति ? पुच्छा, गंगेया! णो ६. संतरं पुढविक्काइया उव्वति,निरंतरं पुढविक्काइया उव्वदंति एवं जाव वणस्सइकाइया नो संतरं, निरंतरं उव्वदृति, है|संतरं भंते ! बेइंदिया उब्बति निरंतरं दिया उव्वदंति ?, गंगेया ! संतरंपि बेइंदिया उव्वद॒ति निरंतरंपि बेई| दिया उब्वटुंति, एवं जाव वाणमंतरा, संतरं भंते ! जोइसिया चयंति? पुच्छा, गंगेया! संतरंपि जोइसिया चयंति निरंतरंपि जोइंसिया चयति एवं जाव वेमाणियावि (सूत्रं ३७२)॥
[प्र०] हे भगवन् ! नैरयिको सांतर च्यवे छे के निरंतर च्यवे हे ? [उ०] हे गांगेय ! नैरयिको सांतर पण च्यवे छे अने निरंतर पण च्यवे छे. ए प्रमाणे यावत् स्तनितकुमार मुधी जाणवू [प्र०] हे भगवान् ! पृथिवीकायिक जीवो सांतर च्यवे छे ? -इत्यादि ।
AALA
0964
For Private and Personal Use Only