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व्याख्याप्राप्ति ॥७१५॥
लवणे णं भंते! समुद्दे केवतिया चंदा पभासिंसु वा पभासिंति वा पभासिस्संति वा ३ एवं जहा जीवाभिगमे जाव ताराओ॥ धायइसंडे कालोदे पुक्खरवरे अभितरपुक्खरद्धे मणुस्सखेत्ते, एएसु सब्वेसु जहा जीवाभिगमे का९सके |जाब-'एगससीपरिवारो तारागणकोडाकोडीणं।' पुक्खरद्धे णं भंते ! समुद्दे केवइया चंदा पभासिंसु वा!, एवं उद्देशान
सब्वेसु दीवसमुद्देसु जोतिसियाणं भाणियब्बंजाव सयंभूरमणे जाव सोभं सोभिंसु वा सोभंति वा सोभिस्संति |७४५॥ | वा । सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति( सूत्रं ३६३ ) नवममए बीओ उद्देसो समत्तो॥९-२॥ ६ [म.] हे भगवन् ! लवण समुद्रमा केटला चंद्रोए प्रकाश कर्यो, केटला प्रकाश करे छे अने केटला प्रकाश करशे ? [उ.] |ए प्रमाणे जेम जीवाभिगम सूत्रमा कां छे तेम तारानी हकीकत सूधी सर्व जाणवू. धातकिखंड, कालोदधि, पुष्करवर द्वीप, अभ्यंतर पुष्कराध अने मनुष्यक्षेत्रमां-ए सर्व स्थळे जीवाभिगम सूत्रमा कह्या प्रमाणे यावत् "एक चंद्रनो परिवार कोटाकोटि तारागणो होय छे" त्यां सूधी सर्व जाणवू [प्र०] हे भगवन् ! पुष्करोद समुद्रमा केटला चंद्रोए प्रकाश कर्यो ?-इत्यादि [उ०] ए रीते [ जीवाभिगम सूत्रमा कह्या प्रमाणे ] सर्व द्वीप अने समुद्रोमां ज्योतिष्कोनी हकीकत यावत् 'स्वयंभूरमणसमद्रमा छे. यावत् शोभ्या, शोभे छे अने शोभशे' त्यां सुधी कहेवी. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे, [एम कही यावद् भगवान् | | गौतम विहरे छे.] ॥ ३६३॥
भगवत् सुधर्मखामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना ९ मा शतकमां बीजा उद्देशानो मूलार्थ संपुर्ण थयो.
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