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व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥७४४॥
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ते काले-ते समये मिथिला नामे नगरी हती. वर्णन. त्यां मणिभद्र चैत्य हतुं. वर्णन. त्यां महावीरस्वामी समोसर्या. पर्षद् (वांदवाने) नीकळी. यावद् भगवान् गौतमे पर्युपासना करता आ प्रमाणे पूछयु-हे भगवन् ! जंबूद्वीप कये स्थळे छे ? हे भगवन् ! ४९ शतके जंबूद्वीप केवा आकारे रहेलो के ? [उ०] अहीं जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति कहेवी, यावद् 'जंबूद्वीप नामे द्वीपमा पूर्व अने पश्चिम चौद लाख अने उद्देशा२ छप्पन हजार नदीओ छे' तेम कयुं . हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे (एम कही भगवान् गौतम यावत् | ॥७४४॥ विहरे छे.)॥ ३६१ ॥ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना ९ मा शतकमा प्रथम उद्देशानो मूलार्थ संपुर्ण थयो.
उद्देशक २ रायगिहे जाव एवं वयासी-जम्बुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइया चंदा पभासिसु वा पभाति वा पभासिस्संति वा. एवं जहा जीवाभिगमे जाव-'एग च सयसहस्सं तेत्तीसं खलु भवे सहस्साई। नव य सया पन्नासा तारागणकोडिकोडीणं ॥६१॥' सोभं सोभिंसु सोभिंति मोभिस्संति ।। (सूत्रं ३६२)॥
[प्र०] राजगृह नगरमां यावत् (गौतम स्वामीए) ए प्रमाणे प्रश्न कर्यो के-हे भगवन् ! जंबूद्वीप नामना द्वीपमां केटला चंद्रोए प्रकाश कर्यो, केटला प्रकाश करे छे अने केटला प्रकाश करशे ? [उ०] ए प्रमाणे जेम जीवाभिगम सूत्रमा कांछे तेम जाणवं, | यावत् 'एक लाख, तेत्रीश हजार, नवमो ने पचास कोडाकोडी ताराना समूहे शोभा करी, शोभा करे छे अने शोभा करशे' त्यां सुधी जाणवू. ॥ ३६२ ॥
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