________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥७२॥
दशतके उद्देशः१० ॥७२८॥
BHARASRHAGRAT
उद्देशक १०. रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी-अन्नउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति जाव एवं परूति-एवं खलु सीलं सेयं १ सुयं सेयं २ सुयं सेयं ३ सील सेयं ४, से कहमेयं भंते! एवं?, गोयमा! जन्नं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव जे ते एवमाहंसु मिच्छा ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि, एवं खलु | मए चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा-सीलसंपन्ने णामं एगे णो सुयसंपन्ने १ सुयसंपन्ने नाम एगे नो सीलसंपन्ने २ पगे सीलसंपन्नेवि सुयसंपन्नेवि ३ एगे णो सीलसंपन्ने नो सुयसंपन्ने ४, तत्व ण जे से पढमे पुरिसजाए | से णं पुरिसे सीलबं असुयवं, उवरए अविनायधम्मे, एस ण गोयमा! मए पुरिसे देसाराहए पण्णत्ते, तत्थ णं जे से दोचे पुरिसजाए से णं पुरिसे असीलवं सुयवं, अणुवरए विनायधम्मे, एस ण गोयमा ! मए पुरिसे देसविराहए पण्णत्ते, तत्थं णं जे से तचे पुरिसजाए से णं पुरिसे सीलबं सुयवं, उवरण विनायधम्मे, एस ण गोयमा! मए पुरिसे सम्वाराहए पन्नत्ते, तत्थ णं जे से चउत्थे पुरिसजाए से णं पुरिसे असीलवं अमुतवं, अणुवरए अविपणायधम्मे, एस णं गोयमा ! मए पुरिसे सम्वविराहए पन्नते ॥ (सूत्रं ३५३ )।
[प्र.] राजगृह नंगरमां यावत् (गौतम) ए प्रमाणे बोल्या के हे भगवन् ! अन्यतीर्थिको ए प्रमाणे कहे , यावद् ए प्रमाणे प्ररूपे छे-"ए रीते खरेखर १ शील ज श्रेय के, २ श्रुत ज श्रेय छ, ३ (शीलनिरपेक्ष ज) श्रुत श्रेय थे, अथवा (श्रुतनिरपेक्ष ज)। शील श्रेय थे, सो हे भगवन् ! ए प्रमाणे केम होय शके ? [४०] हे गौतम ! ते अन्यतीथिको जे ए प्रमाणे कहे छ, यावत तओए
RECASHTRAOREONAGACREA
For Private and Personal Use Only