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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्राप्तिः ॥७२७॥ 183 | [प्र०] हे भगवन् ! औदारिक, वैकिय आहारक, तैजम ने कर्मणशरीरना देशबन्धक, सर्वबन्धक अने अबन्धक एवा सर्व जीवोमां कया जीवों कया जीयोथी यावद् विशेषाधिक छ [उ.] हे गौतम ! १ सौथी थोडा जीयो आहारक शरीरना सर्वबन्धक छे, २ तेथी। | ८ शतके तेना देशवन्धक संख्या तगुगा छ, ३ तेथी वैक्रियशरीरना सर्ववन्धक असंख्यातगुणा छे, ४ तेथी तेना देशबन्धक जीवो असंख्यात-13 उद्देशः लागुणा छे, ५ सेथी तैजस अने कार्मण शरीरना अबन्धक जीवो अनंतगुण अने परस्पर तुल्य छे. ६ तेथी औदारिक शरीरना सर्ववन्धक | ॥७२७॥ जीवों अनंत गुण छ, ७ सेथी तेना अबन्धक जीवो विशेषाधिक छ, ८ तेथी तेना देशबन्धक जीवो असंख्येयगुणा छ, ९ तेथी तैजस | अने कार्मण शरीरना देशबन्धक जीवो विशेषाधिक छ, १० तेथी वैक्रिय शरीरना अबन्धक जीवो विशेषाधिक छे, ११ तेथी आहा|रक शरीरना श्रवन्धक जीवो विशेषाधिक छे. हे भगवन् ! ते एम ज छे, हे भगवन् ! ते एम जले (एम कही भगवान् गौतम ! यावद् विहरे छे.) ॥ ३५२ ।। भगवत् सुधर्मस्वामी प्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना ८ शतकमां नवमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. *5** SHASTROCARROCCAL * For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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