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व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥७२२॥
८ शतके उद्देशः९ ॥७२२॥
णाणावरणिनकम्मासरीरप्पयोगधंधे णं भंते! किं देसबंधे सव्वबंधे?, गोयमा! देसबंधे, णो सव्वयंधे, एवं जाव अंतराइयकम्मा । णाणावरणिजकम्मासरीरप्पयोगबंधेणं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ ?, गोयमा!णाणा. दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-अणाइए सपजवसिए अणाइए अपज्जवसिए वा, एवं जहा तेयगस्स संचिट्ठणा तहेव, एवं जाव अंतराइयकम्मस्साणाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधंतरे णं भंते! कालओ केवञ्चिरं होइ?, गोयमा! अणाइयस्स एवं जहा तेयगसरीरस्स अंतरं तहेव, एवं जाव अंतराइयस्स । एएसिणं भंते ! जीवाणं नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स देसबंधगाणं अबंधगाण य कयरे २ जाव अप्पाबहुगं जहा तेयगस्स, एवं आउयवज्ज़ जाव अंतराइयस्स । आउयस्स पुच्छा, गोयमा! सम्वत्थोवा जीवा आउयस्स कम्मस्स देसबंधगा, अबंधगा संखेजगुणा ५ (सूत्रं ३५०॥)
[म.] हे भगवन् ! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबन्ध | देशबन्ध छे के सर्वबन्ध छ ? [उ०] हे गौतम ! देशबन्ध छे, पण है सर्वबन्ध नथी. ए प्रमाणे यावद् अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोगबन्ध सुधी जाणवू [प्र०] हे भगवन् ! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबन्ध
कालथी क्यां सुधी होय ? [उ०] हे गौतम ! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरपयोगवन्ध चे प्रकारनो कयो छे ते आ प्रमाणे-अनादि सपयवसित (सान्त) अने अनादि अपर्यवसित (अनन्त). ए प्रमाणे यावत जेम तैजस शरीरनो स्थितिकाल कह्यो छे तेम अहीं पण कहेवो, ए प्रमाणे यावद् अन्तराय कर्मनो स्थितिकाल जाणवो. [प्र०] हे भगवन् ! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरमयोगबन्धनुं अन्तर कालथी क्यां मुधी होय १ [उ०] हे गौतम ! अनादि अनंत अने अनादि सात छे. जे प्रमाणे तैजसशरीरमयोगबन्धन अन्तर कां
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