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XI
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८ शतके उद्देशः९ ॥७०८॥
| तिरिक्खजोणियपंचिंदियवेउब्बियसरीरपुच्छा, गोयमा! वीरिय० जहा वाउक्काइयाणं, मणुस्सपंचिंदियवेउ
| ब्विय० एवं चेव, असुरकुमारभवणवासिदेवपंचिंदियवेउन्विय० जहा रयणप्पभापुढविनेरइया, एवं जाव व्याख्या
थणियकुमारा, एवं वाणमंतरा, एवं जोइसिया, एवं सोहम्मकप्पोवगया वेमाणिया एवं जाव अच्चुयगेवेजप्रज्ञप्तिः
कप्पातीया वेमाणिया, एवं चेव अणुत्तरोववाइयकप्पातीया वेमाणिया एवं चेव । वेउब्वियसरीरप्पयोगबंधे ॥७०८॥
जणं भंते! किं देसबंधे सव्वबंधे?, गोयमा! देसबंधेवि सम्बबंधेवि, बाउक्काइयएगिदिय एवं चेव रयणप्पभापुढवि-|
नेरइया एवं चेव, एवं जाव अणुत्तरोववाइया ॥ वेउब्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कालओ केवचिरं होइ ?, गोयमा! सव्वबंधे जहन्नेण एक समयं उकोसेणं दो समया, देसबंधे जहन्नेणं एक समयं उक्कोसेणं तेत्तीसं साग रोवमाई समयूणाई । वाउकाइए-गिदियवेउब्वियपुच्छा, गोयमा! सव्वबंधे एक्कं समय, देसबंधे जहन्नण एकं समयं, उकोसेणं अंतोमुहुत्तं ॥
[प्र०] तियंचयोनिक पंचेन्द्रिय क्रियशरीरमयोगबन्ध संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! सवीर्यता, सयोगता अने सव व्यताथी पूर्ववत् जेम वायुकायिकोने कंधुतेम जाणवू. मनुष्य पंचेन्द्रिय क्रियशरीरप्रयोगवन्ध पण ए प्रमाणे जाणवो. असुरकुमार भवनवा| सीदेव पंचेन्द्रियवैक्रियशरीरमयोगबन्ध रत्नप्रभापृथिवीना नैरयिकनी पेठे जाणवो. ए प्रमाणे यावत् स्तनितकुमारो सुधी जाणवू.ए रीते वानन्यंतर, ज्योतिषिक, सौधर्मकल्पोपत्रक मानिक याचद अच्युत, अने अवेयक कल्पातीत वैमानिकोने जाणवू. तथा अनुत्तरोपपातिककल्पातीत मानिकोने पण ए प्रमाणे जाणवा. [H०] हे भगवन् ! वैक्रियशरीरप्रयोगबन्ध्र शुं देशबन्ध छे के सर्वबन्ध छ ?
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