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॥७०७॥
भापुढविनेरइयपंचिंदियवेउब्वियसरीरप्पयोगवंधेणं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएण?, गोयमा ! वीरियमयोगसद व्याख्या
व्बयाए जाव आउयं वा पडुच्च रयणप्पभापुढवि० जाव बंधे, एवं जाव अहेसत्तमाए। प्रज्ञप्तिः | [अ०] हे भगवन् ! वैक्रियशरीरनो प्रयोगबन्ध केटला प्रकारनो कयो के ? [उ०] हे गौतम ! बे प्रकारनी को छे, ते भा| ॥७०७॥ लप्रमाणे-एकेन्द्रिय वैक्रियशरीरपयोगबन्ध अने पंचेन्द्रिय वैक्रियशरीरपयोगबन्ध, [प्र०] जो एकेन्द्रिय वैक्रियशरीरपयोगबन्ध छे तो
| शुं वायुकायिक एकेन्द्रियशरीरमयोगबन्ध छे के वायुकायिक भिन्न एकेन्द्रिय शरीरमयोगबन्ध छ ? [उ०] ए प्रमाणे ए अमिलापयी
जेम 'भगाइनासंस्थान' पदमां वैक्रिय शरीरनो भेद कह्यो छे, तेम कहे वो; यावत् पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक कल्पातीत वैमानिकदेव पंचेन्द्रिय वैक्रियशरीरप्रयोगबन्ध अने अपर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक-यावद् वैक्रियशरीरपयोगबन्ध. [प्र०] हे भगवन् ! बैंक्रियत्ररीरप्रयागबन्ध कथा कर्मना उदयथी थाय छे ! [उ०] हे गौतम ! सवीर्यता, सयोगता अने सदद्रव्यताथी याबद्र आयुष अने लब्धिने आश्रयी क्रियशरीरमयोग नामकर्मना उदयथी नैक्रियशरीरप्रयोगबन्ध थाय . [प्र०] वायुकायिकएकेन्द्रियक्रियशरीरप्रयोगबन्धसंबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम! सवीयता, सयोगता अने सद्व्यनाथी पूर्वनी पेठे यावद् लब्धिने आश्रयी वायुकायिकएकेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोग नामकर्मना उदयथी यावद वैक्रियशसरपयोगबन्ध थाय छे. [प्र.] हे भगवन ! रत्नप्रभा| पिवीनैरयिकर्षचेन्द्रियवैक्रियशरीरमयोगबन्ध कया कर्मना उदयथी थाय छे ? [उ०] हे गौतम ! सवीर्यता, सयोगता अने सन्यताथी
यावद् आयुष्यने आश्रयी रत्नप्रभापृथिवी नरयिकपंचेन्द्रियशरीरमयोगनामकर्मना उदयथी यावद वैक्रियशरीरप्रयोगवन्ध थाय छे. ए | प्रमाणे यावत् नीचे सातमी नरक पृथ्वी मुधी जाणवू.
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