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प्रज्ञप्तिः ॥६९०॥
८ शतके उद्देशः८ ॥६९०॥
SCREESOMACHAR
[प्र०] हे भगवन् ! जंबूद्वीपमां बे सूर्यो अ॒ अतीत क्षेत्रने प्रकाशे छे, वर्तमान क्षेत्रने प्रकाशेद के अनागत क्षेत्रने प्रकाशे छ ? [उ०] हे गौतम ! अतीत क्षेत्रने प्रकाशता नथी, वर्तमान क्षेत्रने प्रकाशे छे, अने अनागत क्षेत्रने प्रकाशता नथी. [प्र०] हे भगवन् ! (ते सूर्यो ) स्पर्शेला क्षेत्रने प्रकाशित करे छे के अस्पर्शेला क्षेत्रने प्रकाशित करे छ ? [उ०] हे गौतम ! स्पर्शेला क्षेत्रने प्रकाशे छे | पण अस्पर्शला क्षेत्रने प्रकाशित करता नथी; यावत् अवश्य छ दिशाने प्रकाशे छे. [प्र०] हे भगवन् ! जंबूद्वीपमा वे सूर्यो शुं अतीत क्षेत्रने उयोतित करे छे ? इत्यादि. [उ.] पूर्वनी पेठे जाणवू, यावद् अवश्य छ दिशाने उयोतित करे छे, ए प्रमाणे तपावे छे, यावद् अवश्य छ दिशाने प्रकाशे छे. [प्र०] हे भगवन् ! जंबूद्वीपमा सूर्योनी क्रिया शुं अतीत क्षेत्रमा कराय छे, वर्तमान क्षेत्रमा कराय छे के अनागत क्षेत्रमा कराय ? [उ.] हे गौतम ! अतीत क्षेत्रमा क्रिया कराती नथी, वर्तमान क्षेत्रमा क्रिया कराय छे, |पण अनागत क्षेत्रमा क्रिया कराती नथी. [प्र०] हे भगवन् ! शुं (ते सूर्यो) स्पृष्ट क्रियाने करे छे के अस्पृष्ट क्रियाने करे छे ? [उ०] हे गौतम! तेओ स्पृष्ट क्रियाने करे ले, पण अस्पृष्ट क्रियाने नथी करता, यावद् अवश्य छ दिशामां स्पृष्ट क्रियाने करे छे.
जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया केवतियं खेत्तं उडुं तवंति केवतियं खेत्तं अहे तवंति केवतियं खेत्तं तिरियं तवंति?, गोयमा! एगं जोयणसयं उड्ढं तवंति अट्ठारस जोयणस याई अहे तवंति सीयालीसं जोयणसहस्साई दोन्नि तेवढे जोयणसए एकवीस च सहिभाए जोयणस्स तिरियं तवंति ॥ अंतो णं भंते ! माणुसुत्तरस्म पव्वयस्स जे चंदिमसूरियगहगणणक्खत्ततारारूवा ते णं भंते! देवा किं उड्ढोववन्नगा जहा जीवाभिगमे तहेव निरवसेसं जाव उक्कोसेणं छम्मासा। बहिया णं भंते ! माणुसुत्तरस्स जहा जीवाभिगमे जाव इंदट्ठाणे णं भंते !
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