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व्याख्याप्रज्ञप्तिः
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॥३९८॥
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[प्र०] हे भगवन् ! बेइंद्रिय जीवो शुं सारंभ अने सपरिग्रह छ ? [उ.] हे गौतम ! तेज कहेवू यावत् तेओए शरीरो परिगृहीत ४ कर्यां छे अने बाह्य भांड, मात्र, उपकरणो परिगृहीत कर्यां छे, ए प्रमाणे यावत् चरिंद्रिय जीव सुधीना दरेक जीव माटे जाणी ५शतके
लेबु. [प्र०] हे भगवन् ! पंचेन्द्रिय तियंचयोनिको शुं आरंभी छे ? इत्यादि तेज प्रश्न करवो. [उ०] हे गौतम ! तेज कहेवू अर्थाद् । &उद्देशः७ तेओए कर्मो परिगृहीत कर्यां छे, पर्वतो, शिखरो, शैलो, शिखरवाळा पहाडो अने थोडा नमेला पर्वतो तेओए परिगृहीत ॥३९८॥ | काँ छे, जल, स्थल, बिल, गुहाओ अने पहाडमां कोतरेल घरो तेओए परिगृहीत कर्यां छे, पर्वतथी पडता पाणीना झरा, निझरो, कचरावाळा पाणीवाळू एक प्रकारनुं जलस्थान, आनंद देनारुं जलस्थान, क्यारावाळो प्रदेश-ए बधार्नु तेओए ग्रहण कयु छे, कूवो, तळाव, धरो, नदीओ, चोखंडी वाव, गोळ वाव, धोरीयाओ, वांका धोरीयाओ, तळावो, तळावनी श्रेणिओ, एक तळावथी बीजा तळावमां अने बीजा तळावथी त्रीजा तळावमा पाणी जाय ए प्रकारनी तळावनी श्रेणीओ अने चिलनी श्रेणीओ तेओए परिगृहीत करी छे, प्राकार-किल्लो, अट्टालक-चरुखा, चरिय-घर अने किल्लानी बच्चेनो हस्ति विगेरेने जवानो मार्ग,-खडकी अने शहेरना दरवाजा परिगृहीत कर्या छे, देवभुवन अथवा राजभुवन, सामान्य घर, झुपडां, पर्वतमा कोतरेलुं घर, अने हाटो परिगृहीत कर्या छे, शृंगाटक-सिंगोडाना आकारनो मार्ग-A ज्यां त्रण शेरी भेगी थाय-1, ज्यां चार शेरी भेगी थाय ते चतुष्क- मार्ग, चत्वर
ज्यां सर्व रस्ता भेगा थाय ते चोक-x, चार दरवाजावाळा देवकुल बगेरे अने महामार्गों परिगृहीत कर्या छे,शकट-गाईं, यान, युग, है गिल्लि-अंबाडी, थिल्लि-घोडा- पलाण, डोळी अने मेना-सुखपाल परिगृहीत कर्या छे, लोढी, लोढार्नु कडायुं अने कडछानो परिग्रह | कर्यो छे, भवनपतिना निवासो परिगृहीत कर्या छे, देवो, देवीओ, मनुष्यो, मनुषणीओ, तियंचो, तिर्यचणीओ, आसन, शयन, खंड,
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विमां पाणी जाय । पाका घोरीयाओ, तळावी, तलावधान तेओए ग्रहण कर्यु छे, को,
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