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व्याख्याप्रचप्तिः ॥३९६॥
५ शतके उद्देशः७ | ॥३९६॥
| नरयिको आरंभवाळा छे अने परिग्रहवाळा छे पण अनारंभी अने अपरिग्रही नथी. [प्र०] हे भगवन् ! तेओ, क्या हेतुथी परिग्रहवाळा छे अने यावत् अपरिग्रही नथी ? [उ०] हे गौतम ! नैरयिको पृथिवीकायनो यावत् त्रसकायनो समारंम करे छे, तेओए शरीरो परिगृहीत कर्यां छे, कर्मों परिगृहीत कर्यां छे अने तेओए सचित, अचित अने निश्र द्रन्यो परिगृहीत कर्यां छे माटे ते हेतुथी | हे गौतम ! 'तेओ परिग्रही छे' इत्यादि तेज कहे.
असुरकुमारा णं भंते! किं सारंभा ४ ?, पुच्छा, गोयमा ! असुरकुमारा सारंभा सपरिग्गहा,नो अणारंभा अप० । से केण?णं०?, गोयमा ! असुरकुमारा णं पुढविकायं समारंभति जावतसकायं समारंभंति सरीरा परिग्गहिया भवंति कम्मा परिग्गहिया भवंति भवणा परि० भवंति देवा देवीओ मणुस्सा मणुस्सीओ तिरिक्खजोणियातिरिक्खजोणिणीओ परिग्गहियाओ भवंति, आसणसय णभंडमत्तोवगरणा परिग्गहिया भवंति, सचित्ताचित्तमीसयाइं दव्वाइं परिग्गहियाई भवंति,से तेणटेणं तहेव एवं जाव थणियकुमारा । एगिदिया जहा नेरइया।
[प्र.] हे भगवन् ! असुरकुमारो आरंभवाळा छे ? इत्यादि प्रश्न करवो. [उ०] हे गौतम ! असुरकुमारो आरंभवाला छे, परिग्रहवाळा छे पण अनारंभी के अपरिग्रही नथी. [प्र०] हे भगवन् ! ते शा हेतुथी ? [उ०] हे गौतम ! अमुरकुमारो पृथिवीकायनो समारंभ करे छे यावत् त्रसकायनो वध करे छे, तेओए शरीरो परिगृहीत काँ छे, कर्मो परिगृहीत कर्यां छे, देवो, देवीओ, मनुपीओ, तिर्यचो, तिर्यचिणीओ परिगृहीत करी छे, आसन, शयन, भांडो, मात्रको अने उपकरणो परिगृहीत कर्यां छे अने सचित,
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