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व्याख्याप्रज्ञाप्तिः
॥३८८॥
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तिपदेसिए णं भंते ! खंधे पुच्छा, गोयमा ! अणद्धे समज्झे सपदेसे, नो सअद्धे णो अमज्झे णो अपदेसे, जहा
५ शतके दुपदेसिओ तहा जे समा ते भाणियब्वा, जे विसमा ते जहा तिपएसिओ तहा भाणियव्वा । संखेजपदेसिए णं भंते ! खंधे किं सअड्ढेद ? पुच्छा, गोयमा ! सिय सअद्धे अमज्झे सपदेसे सिय अणड्ढे समज्झे सपदेसे,
उद्देशः७ |जहा संखेजपदेसिओ तहा असंखेजपदेसिओऽवि, अणंतपदेसिओऽवि ॥ (सूत्रं २१४)॥
।।३८८॥ हे भगवन् ! शुं परमाणु षुद्गल, सार्ध-अर्ध सहित छे, मध्य सहित छे अने प्रदेश सहित छे के अर्ध रहित छे, मध्यरहित ६ अने प्रदेश रहित छे ? [उ०] हे गौतम ! परमाणु पुद्गल अनर्ध छे, अमध्य छे अने अप्रदेश छे पण सार्ध नथी, समध्य नथी |8|
सप्रदेश नथी. [प्र०] हे भगवन् ! वे प्रदेशवाळो स्कंध, शुं सार्ध समध्य अने सप्रदेश छे के अनर्ध, अमध्य अने अप्रदेश छे ? [उ०] हे गौतम ! ते बे प्रदेशवाळो स्कंध, सार्ध छे, सप्रदेश छे अने मध्य रहित छे पण अनर्थ नथी, समध्य नथी अने अप्रदेश नथी. [प्र०] हे भगवन् ! त्रण प्रदेशवालो स्कंध (ए विषे) ए प्रमाणे प्रश्न करवो. [उ०] हे गौतम ! ते त्रण प्रदेशवाळो स्कंध अनर्ध छे, समध्य छे अने सप्रदेश छे पण सार्ध नथी, अमध्य नथी अने अप्रदेश नथी. जेम, वे प्रदेशवाळा स्कंधने माटे सार्धादि विभाग दर्शाव्यो छे, तेम जेओ सम स्कंधो के एटले समसंख्यावाळा-वेकी संख्यावाला (चार प्रदेशवाय, आठ प्रदेशवाळा इत्यादि) स्कंधो छे, तेने माटे जाणी लेवू अने जेओ विषम स्कंधो छ-एकी संख्यावाला ( पांच प्रदेशवाळा, सात प्रदेशवाळा इत्यादि ) स्कंधो के तेने माटे, जेम त्रण प्रदेशवाला स्कंध संबंधे का तेम जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! संख्येयप्रदेशवाळो स्कंध शुं सार्ध छे ? ( इत्यादि प्रश्न करवो.) [उ०] हे गौतम ! कदाच सार्ध होय, अमध्य होय. अने सप्रदेश होय; कदाच अनर्ध होय, समध्य
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