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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥३८७॥
५ शतके उद्देशः७ | ॥३८॥
[म०] हे भगवन् ! परमाणुपुद्गल, तरवारनी धारनो य सजायानी धारनो आश्रय करे ? [उ०] हा, आश्रय करे. [प्र.] हे | भगवन् ! ते धार उपर आश्रित परमाणु पुद्गल छेदाय, भेदाय ? [उ०] हे गौतम ! ते अर्थ समर्थ नथी-नकी, ते परमाणु पुद्ग
लमा शस्त्र, क्रमण करी शके नहि, ए प्रमाणे यावत्-असंख्य प्रदेशवाळा स्कंधो माटे ममजी लेबु अर्थात् एक परमाणु या असंख्य| प्रदेशवाळो स्कंध शस्त्रद्वारा छेदाय नहि तेम भेदाय नहि. [प्र०) हे भगवन् ! अनंतप्रदेशवाळो स्कंध तरवारनी धारनो या सजायानी | धारनो आश्रय करे ? [उ०] हा, आश्रय करे. [प्र०] ते तरवारनी या सजायानी धार उपर आश्रित अनंतप्रदेशवाळो स्कंध छेदाय भेदाय ? [उ०] हे गौतम ! कोई एक छेदाय अने भेदाय, तथा कोइ एक न छेदाय अने भेदाय. ए प्रमाणे परमाणु पुद्गलथी अनंत प्रदेशवाला स्कंध सुधीना दरेक पुद्गलो परत्वे ' अग्निकायनी वचोवच प्रवेश करे ए प्रमाणेना प्रश्नोत्तरो करवा. विशेष, ज्यां संभवे त्यां 'छदाय, भेदाय' ने बदले 'बळे 'ए प्रमाणे कडे. ए प्रमाणे पुष्करसंवर्त नामना मोटा मेघनी वचोवच प्रवेश करे' ए प्रमाणेना प्रश्नोत्तरो करवा, ते स्थळे 'छेदाय, भेदाय' ने बदले - भीनो थाय' एम कहे; ए प्रमाणे गंगा महानदीना प्रतिश्रोत प्रवाहमां, शीघ्र ते परमाणु पुद्गलादि आवे अने त्यां प्रतिस्खलन पामे' अने 'उदकावर्त या उदक बिंदु प्रत्ये प्रवेश करे अन ते | ( परमाण्वादि ) त्यां नाश पामे' ए संबंधे प्रश्नोत्तरो करवा. ॥ २१३ ॥
परमाणुपोग्गले णं भंते ! किं सअड्ढे समझे सपएसे?, उदाहु अणड्ढे अमज्झे अपएसे ?, गोयमा! अणड्ढे अमज्झे अपएसे,नो सअड्ढे नो समझे नो सपएसे ॥ दुपदेसिए णं भंते खंघे किं सअद्ध समज्झे सपदेसे उदाहु अणद्धे अमज्झ अपदेसे ?, गोयमा! सअद्धे अमज्झे सपदेसे, णो अणद्धे णो समझे णो अपदेसे ।।
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