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व्याख्या
५ शतके
प्रज्ञप्तिः ॥३८॥
उद्देशः६ ॥३८॥
___अहे णं से उसू अप्पणो गुरुयत्ताए भारियत्ताए गुरुसभारियत्ताए अहे वीससाए पच्चोवयमाणे जाई तत्थ | पाणाई जाव जीवियाओ ववरोवेइ तावं च णं से पुरिसे कतिकिरिए ?, गोयमा! जावं च णं से उसू अप्पणो | गुरुयाए जाव ववरोवेइ तावं च ण से पुरिसे काइयाए जाव चउहि किरियाहिं पढ़े, जेसिपि य णं जीवाणं सरीरेहिं धणू निब्बत्तिए तेवि जीवा चउहिं किरियाहिं, धणुपुढे चउहिं, जीवा चउहिं, पहारू चउहिं, उसू पंचहिं, सरे पत्तणे फले पहारू पंचहिं, जेवि य से जीवा अहे पच्चोवयमाणस्स उवग्गहे चिट्ठति तेवि य णं जीवा कातियाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा ॥ ( मृत्रं २०६)॥ । [40] अने हवे ज्यारे पोतानी गुरुता वडे, पोताना भारेपणावडे, पोतानी गुरुकता अने संभारतावडे ते वाण स्वभावथी नीचे पडतुं होय त्यारे त्यां (मार्गमा आवतां ) प्राणोने यावत्-जीवितथी च्युत करे त्यारे ते पुरुष केटली क्रियावाळो होय ? [उ०] हे गौतम ! यावत् ते बाण पोतानी गुरुतावडे यावत् जीवोने जीवितथी च्युत करे यावद ते पुरुष कायिकी यावत् चार क्रियाने फरसे छे अने जे जीवोना शरीरथी धनुष्य बनलं छे ते जीवो पण चार क्रियाने, धनुष्यनी पीठ चार क्रियाने, दोरी चार क्रियाने, हारु चार क्रियाने, बाण पांच क्रियाने, शर, पत्रण, फल अने हारु पांच क्रियाने अने नीचे पडता बाणना अवग्रहमा जे जीवो आवे छे ते जीवो पण कायिकी यावत् पांच क्रियाने फरसे छे. ॥ २०६ ॥
अण्णउत्थिया णं भंते ! एवमातिवति जाव परुति से जहानामए-जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेजा चक्कस्स वा नाभी अरगा उत्तासिया एवामेव जाव चत्तारि पंच जोयणसयाई बहुसमाइन्ने मणुयलोए मणुस्सेहिं,
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