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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥३७०॥ ARMERCISROID केवली णं भंते ! अस्सि समयसि जेसु आगासपदेसेसु हत्थं वा पायं वा बाहुं वा उरुं वा ओगाहित्ताणं | चिट्ठति पभू णं भंते ! केवली सेयकालंसिवि तेसु चेव आगासपदेसेसु हत्थं वा जाव ओगाहित्ता णं चिहित्तए?, ४५ शतके गोयमा! णो ति०, से केणटेणं भंते ! जाव केवली णं अस्सि समयंसि जेसु आगासपदेसेसु हत्थं वा जाव उद्देशः४ चिट्ठति णो ण पभू केवली सेयकालंसिवि तेसु चेव आगासपएसेसु हत्थं वा जाव चिट्टित्तए ?, गो केवलिस्स ॥३७०॥ |णं वीरियसजोगसद्दव्वयाए चलाई उवकरणाई भवंति, चलोवगरणट्ठयाए य णं केवली अस्सि समयंसि जेसु आगासपदेसेसु हत्थं वा जाव चिट्ठति णो णं पभू केवली सेयकालंसिवि तेसु चेव जाव चिहित्तए, से तेणदेणं | जाव वुच्चइ-केवली णं असि समयंसि जाव चिद्वित्तए ॥ (सूत्रं १९८)॥ प्र०] हे भगवन् ! केवली, आ समयमा जे आकाश प्रदेशोमां हाथने, पगने, बाहुने अने ऊरुने अवगाही रहे, अने जे सम| यमां रहे ते पछीना-भविष्यकाळना-समयमां तेज आकाशप्रदेशोमां हाथने यावत्-अवगाहीने रहेवा केवळी समर्थ छ ? उ०] हे गौतम ! आ अर्थ समर्थ नथी. [प्र०] हे भगवन् ! ते कया हेतुथी, यावत्-केवली आ समयमां जे आकाशप्रदेशोमां यावत्-रहे छे पछीना भविष्यकाळना-समयमां एज आकाशप्रदेशोमां केवळी हाथने यावत्-अवगाही रहेवा समर्थ नथी? [उ० हे गौतम ! केवलिने वीर्यप्रधान योगवाळु जीव द्रव्य होवाथी तेना हस्त वगेरे उपकरणो-अंगो-चल होय छे अने हस्त वगेरे अंगो चल होवाथी चालु समयमांजे आकाश प्रदेशोमां हाथने यावत्-अवगाही रहे छे, एज आकाश प्रदेशोमा चालु-समय पछीना भविष्यकाळना समयमां केवली हाथ वगेरेने अवगाही यावत् रहेवा समर्थ नथी. माटे ते हेतुथीएम कशुं छे के, केवली आ समयमां यावत्-रहेवासमर्थनथी.॥१९८॥ 645 For Private and Personal Use Only
SR No.020107
Book TitleBhagvati Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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