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पाख्याप्रज्ञप्तिः ॥३५६॥
५ शतके उद्देशः४ ॥३५६॥
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| हसता नथी तेम उतावला पण थता नथी. [प्र०] हे भगवन् ! हसतो अने उतावळो थतो जीव केटलां प्रकारनां कर्मोने यांधे? [उ.]
हे गौतम! तेवा प्रकारनो जीव सात प्रकारना कोंने बांधे के आठ प्रकारनां कर्मोने बांधे. ए प्रमाणे यावत्-वैमानिक सुधी समजवू. द तथा ज्यारे घणा जीवोने आश्रीने उपलो प्रश्न पूछाय त्यारे तेमां कर्मना बंध संबंधी त्रण भांगा आवे. पण तेमां जीव अने एकें
दियो न लेवा. [प्र.] हे भगवन् ! छमस्थ मनुष्य निद्रा ले-उघे अने उभो उभो उघे? [उ०] हे गौतम ! हा, ते उंघे अने उभो उभो ला पण उघे. जेम आगळ हसवा वगेरे विषे केवळी अने छमस्थ संबंधे प्रश्नोत्तरो जणाव्या हता. तेम निद्रा संबंधे पण ते बन्ने संबंधे प्रश्नो
तरो जाणवा. विशेष ए के, छद्यस्थ मनुष्य दर्शनावरणीय कर्मना उदयथी निद्रा ले छे अने उभो उभो उंघे छे अने ते दर्शनावरणीय कर्मनो उदय केवळिने नथी माटे ते, छद्मस्थनी पेठे निद्रा लेतो नथी. (इत्यादि बीजुं वधुं तेज प्रमाणे जाणवू.) [प्र०] हे भगवन् ! | निदा लेतो के उभो उभो उंघतो जीव केटली कर्मप्रकृतिनो बंध करे (बांधे) [उ.] हे गौतम ! ते जीव सात कर्मप्रकृतिनो बंध करे
के आठ कर्मप्रकृतिनो बंध करे (बांधे). ए प्रमाणे यावत्-वैमानिक सुधी जाणवू. तथा ज्यारे घणा जीवोने उपलो प्रश्न पूछाय त्यारे | तेमां कर्मना बंध संबंधी त्रण भांगा आवे, पण तेमां जीव अने एकेंद्रिय न लेवा. ॥ १८५ ॥ PI हरीण भंते ! हरिणेगमेसी मकदूए इत्थीगम्भं संहरणमाणे किं गम्भाओ गम्भं साहरइ १ गम्भाओ
जोणिं माहरइ २ जोणीओ गम्भं साहरइ ३ जोणीओ जोणिं साहरइ ४ ?, गोयमा ! नो गम्भाओ गम्भं साहरइ, नो गम्भाओ जोणिं साहरइ, नो जोणीओ जोणिं साहरइ, परामुसिय २ अव्वाबाहेणं अब्बाबाहं जोणीओ गम्भं साहरइ ॥ पभू ण भंते ! हरिणेगमेसी सक्कस्स णं दूए इत्थीगन्भं नहसिरसि वा रोमकूवंसि
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