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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
।। ३५४।।
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जाव पासइ ?, गोयमा ! केवली णं पुरच्छिमेगं मियंपि जाणइ अमियंपि जा० एवं दाहिणेणं पचत्थिमेणं उत्तरेणं उडूढं अहे मिपि जाणइ अभियंपि जा० सव्वं जाणइ केवली सव्वं पासइ केवली सव्वओ जाणइ पामइ सव्वकालं जा० पा० सव्वभावे जाणइ केवली सव्वभावे पासइ केवली ॥ अणते नाणे केवलिस्स अणंते दंसणे केवलिस्स, निबुडे नाणे केवलिस्स, निव्वुडे दंसणे केवलिस्स, से तेणद्वेणं जाव पासइ || (सूत्रं १८४) ।
[प्र०] हे भगवन् ! जेम छवस्थ मनुष्य ओरे रहेला शब्दोने सांभळे छे अने परे रहेला शब्दोने सांभळतो नथी तेम शुं केवळी मनुष्य ओरे रहेला शब्दोने सांभळे छे अने परे रहेला शब्दोने नथी सांभळतो ? [उ०] हे गौतम! केवळी तो ओरे रहेला अने परे रहेला आदि अने अंत विनाना शब्दने - सर्व प्रकारना शब्दने जाणे छे अने जूए छे. [प्र० ] हे भगवन् ! ' ओरे रहेला अने परे रहेला शब्दने पण यावत्- (नेज प्रमाणे कहें) केवळी जाणे छे अने जूए छे' ते कारण ? [अ०] हे गौतम! केवळी जीव पूर्व दिशानी मित वस्तुने पण जाणे छे अने अमित वस्तुने पण जाणे छे, ए प्रमाणे दक्षिण दिशानी, पश्चिम दिशानी, उत्तर दिशानी, उर्ध्व दिशानी अने अधो दिशानी पण मित वस्तुने तथा अमित वस्तुने केवळी जाणे छे अने जुए छे. केवळी वधुं जाणे छे अने बधुं जूए छे. केवळी बधी तरफ जाणे छे अने जूए छे. केवळी सर्व काळे सर्व पदार्थों भावो-ने जाणे छे अने जूए छे, केवळीने अनंत ज्ञानी अने अनंत दर्शन के अने केवळीनुं ज्ञान अने दर्शन कोइ जातना पडदा (आवरण) बाळु नथी माटे ते कारणथी' यावत्जूए छे' एम कहुं छे. ॥ १८४ ॥
छमस्थे णं भंते! मस्से हसेज वा उस्सुयाएज्ज वा ?, हंता हसेज वा उस्सुयाएज्ज वा, जहा णं भंते!
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५ शतके
उद्देश: ४ ||||३५४ ||