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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥५६२॥ ७ शतके उद्देश:१० ॥५६२॥ ते काले अने ते समये श्रमण भगवान महावीरना मोटा शिष्य गौतमगोत्री इन्द्रभूति अनगार वीजा शतकना निर्गन्थोद्देशकमां कह्या प्रमाणे मिक्षाचर्याए भमता यथापर्याप्त भक्त पान ने ग्रहण करीने रामगृह नगर थकी यात्रत् त्वरारहितपणे, अचलपणे, असभ्रान्तपणे ईर्या समितिने वारंवार शोधता ते अन्यतीथिकोनी थोडे दूर जाय छे. त्यारे ते अन्यतीर्थिको भगवान् गौतमने थोडे दूर | जतां जुए छे, जोइने एक बीजाने बोलावे छे एक बीजाने बोलावीने तेओए आ प्रमाणे कयु-हे देवानुप्रियो ! आपणने आ कथा (पंचास्तिकायनी वात) अप्रकट-अज्ञात के अने आ गौतम आपणाथी थोडे दूर जाय छे, माटे हे देवानुप्रियो ! आपणे आ अर्थ ४- गौतमने पुछवो श्रेयस्कर छे. एम कही तेओ एक बीजानी पासे ए वातनो स्वीकार करे छ; स्वीकार करीने ज्यां भगवान् गौतम | छे त्यां आवे छे, त्यां आवीने तेओए भगवान् गौतमने आ प्रमाणे का-दे गौतम ! तमारा धर्माचार्य, धर्मोप| देशक श्रमण ज्ञातपुत्र पांच अस्तिकाय प्ररूपे छे, ते आ प्रमाणे-धर्मास्तिकाय, यावत् आकाशास्तिकाय, यावत् रूपिकाय अजीवकायने | जणावे . हे पूज्य गौतम ! ए प्रमाणे शी रीते होय? त्यारे ते भगवान् गौतमे ते अन्यतीर्थिकोने ए प्रमाणे का-हे देवानुप्रियो ! अमे अस्तिभावने नास्ति (अविद्यमान) कहेता नथी,तेम नास्तिभावने अस्ति (विद्यमान) कहेता नथी. हे देवानुप्रियो ! सर्व अस्तिभावने अस्ति कहीए छीए, अने नास्तिभावने नास्ति कहीए छीए. माटे हे देवानुप्रियो ! ज्ञानवडे तमे स्वयमेव ए अर्थनो विचार करो. एप कहीने [गौतमे] ते अन्यतीथिकोने ए प्रमाणे का के ए प्रमाणे . हवे भगवान् गौतम मां गुणशिल चैत्य छे, ज्यां श्रमण भगवान् महावीर छे-त्यां आवीने निन्थिोदेशकमां वह्या प्रमाणे यावत् भक्त पानने देखाडे हे. भक्त-पानने देखाडीने श्रमण भगवान् महावीरने वंदन करे छे, नमस्कार करे हे, वांदी, नमस्कार करी बहु दूर नहि तेम बहु पासे नहि ए प्रमाणे उपासना करे छे. For Private and Personal Use Only
SR No.020107
Book TitleBhagvati Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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