SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassaqarsuri Gyanmandir व्याख्याप्रज्ञप्ति ॥५४९॥ ७ शतके उद्देशः९ ||५४९॥ रहमुसले णं संगामे वट्टमाणे एगे रहे अणासए असारहिए अणारोहए समुसले महया २ जणक्खयं जणवहंा जणप्पमई जणसंवट्टकप्पं रुहिरकद्दमं करेमाणे मव्वओ समंता परिधावित्था से तेण?णं जाव रहमुसले संगामे । रहमुसले णं भंते ! संगामे वहमाणे कति जणसयमाहस्सीओ वहियाओ, गोयमा! छन्नउतिं जणसयसाहस्सीओ बहियाओ। ते णं भंते! मणुया निस्सीला जाव उववन्ना?, गोयमा! तत्थ णं दस साहस्सीओ एगाए मच्छीए कुच्छिसि उववनाओ, एगे देवलोगेसु उववन्ने, एगे सुकुले पञ्चायाए, अवसेसा ओसन्नं नरगतिरिक्खजोणिएसु उववन्ना ॥ (सूत्रं ३००)॥ [प्र०] अर्हते जाण्यु ठे, अर्हते प्रत्यक्ष कयु के, अहे ते विशेष प्रकारे जाण्यु छे के रथमुशल नामे संग्राम हे. हे भगवन् ! ज्यारे स्थमुशल नामे संग्राम थतो हतो त्यारे कोनो विजय थयो, अने कोनो पराजय थयो ? [उ०] हे गौतम ! वज्जी (इन्द्र) विदेहपुत्र (कणिक) अने अमुरेन्द्र अमुर कुमारराजा चमर एओ जीत्या; नवमल्लकि अने नव लेच्छकि राजाओ पराजय पाम्या. त्यारबाद ते कूणिकराजा रथमुशल संग्राम उपस्थित थएलो जाणी (पोताना कौटुम्बिक पुरुषोने बोलावे छे) बाकीk (सर्व वृत्तान्त) महाशिलाकंटक संग्रामनी पेठे जाणवू. परन्तु विशेष ए के के अहीं भूतानंद नामे प्रधानहस्ती छे; यावत् ते (कूणिक) रथमुसलसंग्राममा उतो. तेनी आगल देवेन्द्र देवराज शक्र हे. ए प्रमाणे पूर्वनी पेठे यावत् रहे छे. पाछळ असुरेन्द्र असुरकुमारनो राजा चमर एक मोटुं लोढार्नु किठीनना जे कवच विकुर्वीने रहेलो हे. ए प्रमाणे खरेखर त्रण इन्द्रो युद्ध करे हे. जेमके-देवेन्द्र, मनुजेन्द्र अने असुरेन्द्र. हवे | ये कणिक एक हाथीवडे पण शत्रुओनो पराजय करवा समर्थ के. यावत् तेणे पूर्व कह्या प्रमाणे (शत्रुओने ) चारे दिशाए नसाडी C 43 For Private and Personal Use Only
SR No.020107
Book TitleBhagvati Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy