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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥५४८॥
७ शतके उद्देशः९ ॥५४८॥
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[प्र०] हे भगवन् ! शा कारणथी एम कहेवाय छे के ते महाशिलाकंटक संग्राम के ? [उ०] हे गौतम ! ज्यारे महाशिलाकंटक संग्राम थतो हतो त्यारे ते संग्राममा जे घोडा, हाथी, योधा अने सारथीओ तृण, काष्ट, पांदडा के कांकरावती हणाय त्यारे तेओ सघळा एम जाणे के हुं महाशिलाथी हणायो, ते हेतुथी हे गौतम ! ते महाशिलाकंटक संग्राम कहेवाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! ज्यारे महाशिलाकंटक संग्राम थतो हतो त्यारे तेमां केटलालाख माणसो हणाया? [उ.] हे गौतम ! चोरासीलाख माणसो हणाया. [प्र०] हे भगवन् ! निःशील, यावत् प्रत्याख्यान अने पोषधोपवासरहित, रोषे भरायेला, गुस्से थयेला, युद्धमां घायल थयेला, अनु
पशांत एवा ते मनुष्यो कालसमये मरण पामीने क्यां गया, क्या उत्पन्न थया? [उ०] हे गौतम ! घणे भागे तेओ नारक अने हैातियंचयोनिमां उत्पन्न थया छे. ॥ २९९ ॥
णायमेयं अरहया सुयमेयं अरहया विनायमेयं अरहया रहमुसले संगामे, रहमुसले णं भंते ! संगामे वहमाणे के जइस्था के पराजहत्था ?, गोयमा! वजी विदेहपुत्ते चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया जइत्था, नव मल्लई नब लेच्छइ पराजइत्था, तए णं से कूणिए राया रहमुसलं संगाम उवट्ठियं सेसं जहा महासिलाकंटए | नवरं भृयानंदे हस्थिराया जाव रहमुलसंगामं ओयाए, पुरओ य से सके देविंदे देवराया, एवं तहेव जावचिटुंति, मग्गओ य से चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया एगं महं आयासं किढिगपडिरूवगं विउम्वित्ताणं चिट्ठइ, एवं खलु तओ इंदा संगामं संगामेंति, तंजहा-देविंदे य मणुइंदे य असुरिंदे य, एगहत्थिणावि णं पभू कूणिए राया जइत्तए, तहेव जाव दिसोदिसिं पडिसेहित्था। से केणतुणं भंते! एवं बुच्चह रहमुसले संगामे २१, गोयमा !
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