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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शतके उद्देशः९ ॥५४३।। उदेशक ९. व्याख्या असंवुडे णं भंते ! अणगारे वाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगवन्नं एगरूवं विउवित्तए ?, णो तिण-1 प्रज्ञप्ति ढे समठू । असंवुडे णं भंते ! अणगारे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगवन्न एगरूवं जाव हंता पभू । से ॥५४३॥ &ाभंते ! किं इहगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वइ,तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विउव्वति,अन्नत्थगए पोग्गले परिया-1 इत्ता विकुब्बइ?, गोयमा ! इहगए पोग्गले परियाइत्ता विकुब्बइ, नो तस्थगए पोग्गले परियाइत्ता विकुब्वइ, नो अन्नत्थगए पोग्गले जावविकुब्वति, एवं एगवन्नं अणेगरूवं चउभंगो जहा छट्टसए नवमे उद्देसए तहा इहावि दाभाणियवं, नवरं अणगारे इहगयं इहगए चेव पोग्गले परियाइत्ता विकुब्वइ, सेसं तं चेव जाव लुक्खपोग्गलं निद्धपोग्गलत्ताए परिणामेत्तए ?, हंता पभू, से भंते ! किं इहगए पोग्गले परियाइत्ता जाव नो अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विकुन्वइ ॥ (सूत्रं २९८)॥ ना [प्र०] हे भगवन् ! असंवृत-प्रमत्त साधु बहारना पुद्गलोने ग्रहण कर्या शिवाय एकवर्णवाळ एक रूप विकुर्ववा समर्थ छे ? उ.] हे गौतम! ए अर्थ योग्य नथी. [प्र०] हे भगवन ! असंवृत साधु बहारना पुद्गलोने ग्रहण करी एकवर्णवा- एक रूप यावत् विकुर्ववा समर्थ छ?] [उ०] हा, समर्थ छे. [प्र०] हे भगवन् ! ते साधु शुं अहीं-मनुष्यलोकमा रहेला-पुद्गलोने ग्रहण करीने | विकुर्वे, त्यां रहेला पुद्गलोने ग्रहण करीने विकुर्वे के अन्य स्थळे रहेला पुद्गलोने ग्रहण करीने विकुर्वे ? [उ०] हे गौतम ! अहीं रहेला पुद्गलोने ग्रहण करी विकुर्वे, पण त्यां रहेला पुद्गलोने ग्रहण करी न विकुर्वे, तेम अन्यत्र रहेला पुद्गलोने ग्रहण करी यावत् | %A4%%% For Private and Personal Use Only
SR No.020107
Book TitleBhagvati Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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