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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥४९६॥
| ७ शतके उद्देशः१ ॥४९६॥
[प्र०] हे भगवन् ! दुःखी जीव दुःखथी व्याप्त बद्ध होय के अदुःखी-दुःखरहित जीव दुःखथी व्याप्त होय ? [उ०] हे गौतम, दुःखी जीव दुःखथी व्याप्त होय, पण दुःखरहित जीव दुःखथी व्याप्त न होय. [म.] हे भगवन् ! दुःखी नारक दुःखथी व्याप्त | होय के अदुःखी नारक दुःखथी व्याप्त होय ? [उ०] हे गौतम! दुःखी नारक दुःखथी व्याप्त होय, पण दुःखरहित नारक दुःखथी व्याप्त न होय. ए प्रमाणे यावत् वैमानिकने विषे दंडक कडेवो. ए प्रमाणे पांच दंडक जाणवा-१ दुःखी दुःखथी व्याप्त छे, २ दुःखी दुःखने ग्रहण करे छे, ३ दुःखी दुःखने उदीरे छे, ४ दुःखी दुःखने वेदे छे, ५ दुःखी दुःखनी निर्जरा करे छे. ॥ २६५ ॥
अणगारस्स णं भंते ! अणाउत्तं गच्छमाणस्स वा चिट्ठमाणस्स वा निसियमाणस्स(वा) तुयदृमाणस्स वा अणाउत्तं वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं गेण्हमाणस्स वा निक्खिवमाणस्स वा तस्स णं भंते ! किं इरियावयिा किरिया कजइ? संपराइया किरिया कजइ ?, गो! नो ईरियावहिया किरिया कजति, संपराइया किरिया कजति । से केण?णं.?, गोयमा ! जस्स णं कोहमाणमायालोमा वोच्छिन्ना भवंति तस्स णं ईरियावहिया किरिया कन्जइ, नो संपराइया किरिया कजइ, जस्स णं कोहमाणमायालोभा अवोच्छिन्ना भवंति | तस्स णं संपरायकिरिया कजइ, नो ईरियावहिया, अहासुत्तं रीयमाणस्स ईरियावहिया किरिया कन्जइ, उस्सुत्तं रीयमाणस्स संपराइया किरिया कज्जइ, से ण उस्सुत्तमेव रिपति, से तेणटेणं०॥ (सूत्रं २६६)॥
[प्र०] हे भगवन् ! उपयोग (आत्मजागृति, सावधानता) शिवाय गमन करता, उभा रहेता, बेसता अने सूता, तेमज उपयोग शिवाय वस्त्र, पात्र, काम्बल अने पादरोंच्छनक (रजोहरण) ने ग्रहण करता ने मुकता अनगार (साधु) ने हे भगवन् ! ऐर्यापथिकी
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