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व्याख्याप्रज्ञप्ति ॥४९५॥
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[प्र०] हे भगवन् ! बंधननो छेद थवाथी कर्मरहित जीवनी गति शी रीते स्वीकाराय ? [उ.] हे गौतम ! जेम कोई एक वटाणानी शिंग, मगनी शिंग, अडदनी शिंग, सिंबलीनी (शेमळानी) शिंग अने एरंडानुं फल तडके मुक्या होय अने सुकाय त्यारे ते ७ शतके फुटीने (तेमांना वीज) पृथिवीनी एक बाजुए जाय; ए प्रमाणे हे गौतम! बंधननो छेद थवाथी कर्मरहित जीवनी गति स्वीकाराय हे. उदशः १ [प्र०] हे भगवन् ! निरिंधन ( कर्मरूप इन्धनथी मुक्त) थवाथी कर्मरहित जीवनी गति शी रीते स्वीकाराय ? [उ०] हे गौतम!8॥४९॥ इन्धनधी छूटेला धूमनी गति स्वाभाविक रीते प्रतिवन्ध शिवाय उंचे प्रवर्ते छे. ए प्रमाणे हे गौतम! [ निरिधनपणाथी-कर्मरूप इन्धनथी मुक्त थवाथी कर्मरहित जीवनी गति प्रवर्ते छे. ] [प्र०] हे भगवन् ! पूर्वना प्रयोगथी कमरहित जीवनी गति शी रीते खीकाराय ? [उ०] हे गौतम ! जेम कोइ एक धनुषधी छूटेला बाणनी गति प्रतिबन्ध शिवाय लक्ष्यना सन्मुख प्रवर्ते ठे, तेम हे
गौतम ! पूर्वप्रयोगथी कर्मरहित जीवनी गति स्वीकाराय छे, हे गौतम ! ए प्रमाणे निःसंगताथी, नीरागताथी, यावत् पूर्वप्रयोगथी 8 कर्मरहित जीवनी गति स्वीकाराय छे. ॥२६४ ॥
दुक्खी भंते ! दुक्खेणं फुडे अदुक्खी दुक्खेणं फुडे ?, गोयमा ! दुक्खी दुक्खेणं फुडे, नो अदुक्खी दु. क्षेणं फुडे । दुक्खी णं भंते ! नेरतिए दुक्खेण फुडे अदुक्खी नेरतिए दुक्खेणं फुडे ?, गोयमा! दुक्खी नेरइए दुक्खेणं फुडे, नो अदुक्खी नेरतिए दुक्खेणं फुडे, एवं दंडओ जाव वेमाणियाणं, एवं पंच दंडगा नेयव्वा, दुक्खी दुक्खेणं फुडे १ दुक्खी दुक्खं परियायइ २ दुक्खी दुक्ख उदीरेइ ३ दुक्खी दुक्ख वेदेति ४ दुक्खी दुक्खं निजरेति ५॥ (सूत्रं २६५)॥
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