________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
व्याख्या-1 प्रज्ञप्तिः ॥४९॥
REACHERE ARROCKS
किरिया कज्जइ ? संपराइया किरिया कजई ?, गोयमा! समणोवासयस्स णं सामाइयकडस्स समणोवासए अच्छमाणस्म आया अहिगरणीभवइ, आयाहिगरणवत्तियं च णं तस्म नो ईरियावहिया किरिया कजइ,
का७ शतके संपराइया किरिया कजइ, से तेणटेणं जाव संपराइया ।। (सूत्रं २६१)
उद्देशः१ [प्र०] हे भगवन् ! श्रमणना उपाश्रयमा रहीने सामायिक करनार श्रमणोपासकने (श्रावकने) शुं ऐपिथिकी क्रिया लागे के
॥४९॥ सांपरायिकी क्रिया लागे ? [उ०] हे गौतम ! ऐर्यापथिकी क्रिया न लागे, पण साम्परायिकी क्रिया लागे. [प्र.] हे भगवन् ! शा हेतुथी यावत् सांपरायिकी क्रिया लागे ? [उ.] हे गौतम ! श्रमणना उपाश्रयमा रही सामायिक करनार श्रावकनो आत्मा अधिकरण (कषायना साधनो) युक्त छे, तेथी तेने आत्माना (पोताना) अधिकरण निमित्ते ऐर्यापथिकी क्रिया न लागे, पण सांपरायिकी क्रिया लागे, ते हेतुथी यावत् सांपरायिकी क्रिया लागे छे. ॥ २६१ ॥
समणोवासगस्स णं भंते ! पुवामेव तसपाणसमारंभे पञ्चक्खाए भवति, पुढविसमारंभ अपचक्रवाए भवइ,से य पुढविं खणमाणे अण्णयरं तसं पाणं विहिंसेज्जा से णं भंते ! तं वयं अतिचरति', णो तिणढे समहे, नो खलु से तस्स अतिवायाए आउट्टति । समणोवासयस्स णं भंते! पुवामेव वणस्सइसमारंभे पचक्खाए, से य पुढविं खणमाणे अन्नयरस्स रुक्खस्स मूलं छिदेज्जा से णं भंते! तं वयं अतिचरति !, णो तिणटे समढे, नो खलु नस्स अइवायाए आउद्दति ॥ (सूत्रं २६२)।
[प्र.] हे भगवन् ! जे श्रमणोपासकने पूर्व त्रसजीवोना वचनुं प्रत्याख्यान होय अने पृथ्वीकायना वधनुं प्रत्याख्यान न होय,
ॐॐ4% A5
For Private and Personal Use Only