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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥४५॥
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शैली छे, पश्चिमभ्यंतर कृष्णराजि उत्तरबाह्य कृष्णराजिने स्पर्शेली छे अने उत्तराभ्यंतर कृष्णराजि पूर्वबाह्य कृष्णराजिने स्पर्शेली छे, पूर्वनी अने पश्चिमनी बे बाद्य कृष्णराजिओ पडंशा छ खूणी छे, उत्तरनी अने दक्षिणनी बे बाद्य कृष्णराजिओ बांसी त्रिखूणी छे,
P६ शतके पूर्वनी अने पश्चिमनी वे अभ्यंतर कृष्णराजिओ चउरंस--चोरस चोखंडी छे अने उत्तरनी अने दक्षिणनी बे अभ्यंतर कृष्णराजिओ उद्देशः५ पण चउरंस चोखंडी छे. कृष्णराजिओना आकारोने लगती आ गाथा कहे छे:-पूर्वनी अने पश्चिमनी कृष्णराजि छ खूणी छे, वळी, ॥४५५॥ दक्षिणनी अने उत्तरनी बाह्य कृष्णराजि त्रिखूणी छे, अने वीजी बधी पण अभ्यंतर कृष्णराजि चोरस छे.
कण्हराईओ णं भंते ! केवतियं आयामेणं केवतियं विक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं पण्णत्ता ?, गोयमा! असंखेज्जाई जोयणसहस्साई आयामेणं, असंखेजाई जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, असंखेजाइं जोयणसहस्साई
वातावमण कपात वणवालय पारक परिक्खेवेणं पण्णत्ताओ। कण्हरातीओ णं भंते ! केमहालियाओ पण्णत्ता ?, गोपमा! अयण जंबुद्दीवे २ जाव | अद्धमासं बीतीवएज्जा अत्थेगतियं कण्हराती वीतीवएज्जा अत्थेगइयं कण्हराती णो बीतीवएजा, एमहालियाओ णं गोयमा ! कण्हरातीओ पण्णत्ताओ। अस्थि णं भंते ! कण्हरातीसु गेहाति वा गेहावणाति वा ?, नो तिणढे समझे । अत्थि णं भंते ! कण्हरातील गामाति वा०?, णो तिणढे समझे । अत्यि णं भंते ! कण्ह० ओराला बलाइया संभुच्छंति ३ ?, हंता अस्थि,
प्राहे भगवन् ! कृष्णराजि, आयामबडे केटली कही छे ? विष्कंभवडे केटली कही छे अने परिक्षेपवडे केटली कही छे ।। उका हे गौतम ! कृष्णराजिओनो आयाम, असंख्येय योजन सहस्र छे, विष्कंभ, संख्येय योजन सहस छे अने परिक्षेम तो
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