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कति णं भंते ! कण्हराईओ पण्णत्ताओ?, गोयमा! अट्ट कण्हराईओ पण्णत्ताओ। कहि णं भंते ! एयाओ| व्याख्या
६ शतके अट्ट कण्हराईओ पण्णत्ताओ?, गोयमा ! उपि सणंकुमारमाहिंदाणं कप्पाणं हिटुं बंभलोए कप्पे रिढे विमाणे 31 प्रज्ञप्तिः पत्थडे, एत्थ णं अक्खाडगसमचउरंससंठाणसंठियाओ अट्ठ कण्हरातीओ पण्णत्ताओ. तंजहा-पुरच्छिमेणं
| उद्देशः ५ ॥४५४॥ दो पञ्चत्थिमेणं दो दाहिणेणं दो उत्तरेणं दो, पुरच्छिमभंतरा कण्हराई दाहिणं बाहिरं कण्हरातिं पुट्ठा, दा- ॥४५४॥
| हिणभंतरा कण्हराती पञ्चत्यिमबाहिरं कण्हराइं पुट्ठा, पचत्थिमभंतरा कण्हराई उत्तरबाहिरं कण्हरातिं पुट्ठा, उत्तरमभंतरा कण्हराती पुरच्छिमबाहिरं कण्हरातिं पुट्ठा, दो पुरच्छिमपञ्चत्थिनाओ बाहिराओ कण्हरातीओ छलसाओ, दो उत्तरदाहिणबाहिराओ कण्हरातीओ तंसाओ, दो पुरच्छिमपञ्चत्थिमाओ अभितराओ ४ कण्हरातीओ चउरंसाओ, दो उत्तरदाहिणाओ अभितराओ कण्हरातीओ चउरंसाओ, 'पुवावरा छलंसा दासा पुण दाहिणुत्तरा वज्झा । अन्भंतर चउरंसा सव्वावि य कण्हरातीओ ॥४३॥'
प्र०] हे भगवन् ! कृष्णराजिओ केटली कही छे ? [उ.] हे गौतम ! आठ कृष्णराजिओ कहेली छे. [प्र०] हे भगवन् ! ए KI आठ कृष्णराजिओ क्यां आवेली कही छे' [उ०] हे गौतम ! उपर सनत्कुमार माहेन्द्रकल्पमा अने नीचे ब्रह्मलोककल्पमां (अ)रिष्ट | विमानना पाथडामा छ अर्थात् ए ठेकाणे अखाडानी पेठे समचतुरस्र-चोखंडे संस्थाने संस्थित एवी आठ कृष्णराजिओ कहेली छे, | ते जेमके, वे कृष्णराजि पूर्वमां, वे कृष्णराजि पश्चिममां, वे कृष्णराजि दक्षिणमां अने बे कृष्णराजि उत्तरमां, ए प्रमाणे आठ कृष्ण| राजिओ कही छे, पूर्वाभ्यंतर कृष्णराजि दक्षिणबाह्य कृष्णराजिने स्पर्शेली छे, दक्षिणाभ्यंतर कृष्णराजि पश्चिमबाह्य कृष्णराजिने स्प
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